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नवाँ अध्याय
वंश-साहित्य 'वंश' शब्द का अर्थ और इतिहास से भेद
'बंश' साहित्य पालि साहित्य की एक मुख्य विशेषता है । यद्यपि' वंश' (पालि 'बम') नाम से कोई ग्रन्थ संस्कृत भाषा या अन्य किसी प्राचीन आर्य-भाषा के साहित्य के इतिहास में नहीं मिलता, किन्तु जिसे छान्दोग्य-उपनिषद् में 'इतिहास-पुराण' कहा गया है, उसकी तुलना विषय और शैली की दृष्टि से पालि 'वंस' ग्रन्थों से की जा सकती है । 'इतिहास-पुराण' या ठीक कहें तो 'पुराण-इतिहास' ग्रन्थों के सर्वोत्तम उदाहरण संस्कृत भाषा में महाभारत और अष्टादश पुराण जैसे ग्रन्थ ही है। इनके विषयों में धर्म-वृत्त और कथाओं के साथ साथ प्राचीन भारतीय इतिहास का भी संनिवेश है। इनका निश्चित आधार ऐतिहासिक होते हुए भी वर्णन-शैली प्रायः इतनी अतिरंजनामयी और नैलिक उद्देश्यों से (कहीं कहीं साम्प्रदायिक मतवादों से भी-जैसा कि उत्तरकालीन पुराणों में)ओतप्रोत होती है कि उनमें से निश्चित इतिहास को निकालना बड़ा कठिन हो जाता है। पाजिटर आदि विद्वानों को उनका वास्तविक ऐतिहासिक मूल्याकंन करने में कितना परिश्रम करना पड़ा है, यह इसी से जाना जा सकता है । जो बात संस्कृत के पुगण-इतिहासों के बारे में ठीक है, वही बात पालि के 'वंस' ग्रन्थों के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है । कुछ अन्तर, केवल मात्रा का यह अवश्य है कि पालि 'वंस'-कारों ने भारतीय 'पुराण'-कारों की अपेक्षा कुछ अधिक ऐतिहासिक बुद्धि का परिचय दिया है । संस्कृत में केवल 'राजतरंगिणी' को छोड़कर और कोई ग्रन्थ उनकी कोटि का नहीं है । निश्चय ही उनके वर्णनों में निश्चित इतिहास की सामग्री संस्कृन पुराण-इतिहासों से तो बहुत अधिक मात्रा में और अधिक स्पष्ट रूप से मिलती है । भारतीय परम्परा के अनुसार इतिहास-पुराण के पाँच लक्षण