________________
( ५४९ ) अट्ठकथा में) उद्धृत किया है । बुद्धघोष का समय चौथी-पाँचवीं शताब्दी है । अतः यह निश्चित है कि 'दीपवंस' का प्रणयन -काल ३५२ ई० (महासेन के शासनकाल की अन्तिम साल, जब तक का वर्णन 'दीपवंस' में मिलता है) और ४५० ई० के बीच ही होना चाहिये । 'दीपवंस' की ऐतिहासिक परम्परा और विषयवस्तु प्राचीन सिंहली अट्ठकथाओं के ऐतिहासिक अंशों पर आधारित है। ये सिंहली अट्ठकथाएँ अत्यन्त प्राचीन काल में सिंहल में लिखी गई थीं। इनकी भाषा सिंहली गद्य थी, किन्तु बीच बीच में कहीं कहीं पालि-गाथाएँ भी इनमें सम्मिलित थीं । इन्हीं अट्ठकथाओं पर बुद्धघोष की पालि-अट्ठकथाएँ आधारित हैं और इन्हीं पर 'दीपवंस' भी। ‘महा-अट्ठकथा' 'महापच्चरी' 'कुरुन्दी' 'चुल्लपच्चरी' 'अन्धट्ठकथा' आदि जिन सिंहली अट्ठकथाओं से बुद्धघोष ने सामग्री ली, उन्हीं पर 'दीपवंस' भी आधारित है । विशेषतः जिसे 'महावंस-टीका' में 'सीहलट्ठकथा-महावंस' कहा गया है, उससे भी सम्भवतः 'दीपवंस' में अधिक सहायता ली गई है । अनेक स्रोतों से सहायता लेने के कारण और उनमें निर्दिष्ट परम्पराओं को उनके मौलिक रूप में ही रख देने की प्रवृत्ति के कारण , 'दीपवंस' में अनेक पुनरुक्तियां मिलती हैं। विभिन्न स्रोतों से सामग्री संकलित की गई है, किन्तु उम संकलन को व्यवस्थित एवं एकात्मतापरक रूप प्रदान नहीं किया गया। एक ही घटना का वर्णन एक जगह संक्षिप्त रूप से कर दिया गया है। दूसरी जगह उसी घटना का वर्णन विस्तत रूप से दे दिया गया है । यह विभिन्न स्रोतों से संकलित सामग्री को व्यवस्थित रूप न दे सकने के कारण ही है । अतः साहित्यिक कला की दृष्टि से यह ग्रन्थ उतना महत्त्वपूर्ण नहीं हो पाया। भाषा और छन्द दोनों ही इस ग्रन्थ के निर्दोष नहीं हैं । जबकि ऐतिहासिक सामग्री इस ग्रन्थ ने उपर्युक्त सिंहली अट्ठकथा-माहित्य से ली है, भाषा और शैली की दृष्टि से यह ग्रन्थ त्रिपिटक पर भी आधारित कहा जा सकता है । बुद्धवंस, चरियापिटक, जातक, परिवारपाठ आदि ग्रन्थों की शैली की 'दीपवंस' की भाषा-शैली से पर्याप्त समानता है । फिर भी, जैमा अभी निर्दिष्ट किया जा चुका है, भाषा पर लेखक का अधिक अधिकार दिखाई नहीं पड़ता। साहित्यिक दृष्टि से 'दीपवंस' एक अव्यवस्थित, पुनरुक्तिमय, भाषा और शैली के दोषों से परिपूर्ण एवं नीरस गद्य-पद्यात्मक (विशेषतः पद्यात्मक) रचना है।