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क्रमशः ‘जिनालंकार' और 'जिनचरित' हैं, जो काव्य-ग्रंथ हैं । इनका विवरण हम पालि-काव्य का विवेचन करते समय दसवें अध्याय में देंगे । सारिपुन और `उनके शिष्यों का यह उपर्युक्त साहित्य पराक्रमबाहु प्रथम के शासन काल में लिखागया, अतः इसका समय बारहवीं शताब्दी का उत्तर भाग ही है । इसी समय 'वंसत्थदीपनी' नामकी 'महावंस' की टीका भी लिखी गई । किन्तु उसके रचयिता का नाम अभी अज्ञात ही है ।
तेरहवीं शताब्दी का पालि-साहित्य
तेरहवीं शताब्दी के पालि-साहित्य के प्रसिद्ध नाम वैदेह स्थविर 'विदेह थेर' बुद्ध और धम्मकित्ति हैं । वैदेह थेरकी दो प्रसिद्ध रचनाएँ 'समन्त कूट वण्णना' 'और 'रसवाहिनी' हैं । २ बुद्धप्पिय की रचना 'पज्जमधु' है । यह एक काव्य-ग्रन्थ है । इसका विवेचन हम दसवें अध्याय में करेंगे । इस शताब्दी की सम्भवतः सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण घटना 'महावंस' का 'चूलवंस' के नामसे परिवर्द्धन है । 'महाम' का इस प्रकार प्रथम परिवर्द्धन तेरहवीं शताब्दी में और दूसरा परिवर्द्धन १८ वीं शता 'ब्दी के मध्यभाग में किया गया। बारहवीं शताब्दी में इस परिवर्द्धन को करने वाले 'धम्मकित्ति' नामक भिक्षु थे । सिंहल और बरमा में इस नाम के अनेक शताब्दियों में
अधिक भिक्षु हुए हैं कि यह धम्मकित्ति उनमें से कौन से थे, इसका सम्यक् रूप से निर्णय नहीं किया जा सकता । सम्भवतः यह वही स्थविर धम्मकित्ति थे, जिन्होंने महावंश ८४५१२ के अनुसार बरमा से लंका में जाकर बौद्ध धर्म का अध्ययन किया था इसप्रकार जिनका काल तेरहवीं शताब्दी का मध्य भाग है । इसी समय 'अत्तनगलु विहारवंस' नामक वंश ग्रंथ भी लिखा गया, जिसके लेखक का नाम अभी अज्ञात ही है । तेरहवीं शताब्दी के अंतिम या चौदहवीं शताब्दी के आदि भाग के 'पालि साहित्य के इतिहास में सिद्धत्थ और धम्मकित्ति महासामी ( धर्मकीर्ति महास्वामी) इन दो भिजुओं के नाम प्रसिद्ध हैं । सिद्धत्थ 'पज्जमधु' के रचयिता बुद्धप्पिय के शिष्य थे । इनकी रचना 'सारसंगह' है जो गद्य-पद्य मिश्रित बुद्ध-धर्म-सम्बन्धी ग्रन्थ है | धम्मकित्ति महास्वामीकी रचनाका नाम ' सद्धम्मसंगह' है । इसमें चालीस अध्याय
१. २. इनके विवरण के लिए देखियेआगे दसवें अध्याय में पालि- काव्य का विवरण ।
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