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( ४१८ ) (आ) कितने स्कन्धों, आयतनों और धातुओं में वे धर्म सम्मिलित नहीं हैं जो रूप स्कन्ध से वियुक्त है ?
एक स्कन्ध, दम आयतनों और दस धातुओं में वे सम्मिलित नहीं हैं । पुग्गलपत्ति -
'पुग्गलपञ्जनि' (पुद्गल-प्रज्ञप्ति) गब्द का अर्थ है पुद्गलों या व्यक्तियों संबंधी ज्ञान या उनकी पहचान । 'पुग्गल-
पत्ति ' में व्यक्तियों के नाना प्रकारों का वर्णन किया गया है । विषय या वर्णन-प्रणाली की दृष्टि मे इस ग्रन्थ का अभिधम्म की अपेक्षा मनन्त से अधिक घनिष्ठ संबंध है । व्यक्तियों का निर्देन यहाँ धम्मों के माथ उनके संबंध की दृष्टि मे नहीं किया गया है, जो अभिधम्म का विपय है। बल्कि अंगनर-निकाय की शैली पर, बुद्ध-वचनों का आश्रय लेकर, या कहीं उनको अधिक स्पष्ट करने की दृष्टि से, या उनको व्याग्या-स्वरूप, गुण, कर्म और स्वभाव के विभाग के अनुसार व्यक्तियों के नाना स्वम्पों को वर्गबद्ध किया गया है, जो मूल बुद्ध-धर्म के नैतिक दृष्टिकोण को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । संपूर्ण ग्रन्थ में दम अध्याय है, जिनमें प्रथम में एक-एक प्रकार के व्यक्तियों का निर्देश है, दुमरे में दोदो प्रकार के और इसी प्रकार क्रमग: बढ़ते हए दसवें अध्याय में दम-दम प्रकार के व्यक्तियों का निर्देश है । चार आर्य-श्रावक, पृथग्जन, सम्यक् सम्बुद्ध, प्रत्येक बुद्ध, शैश्य, अशैश्य, आर्य, अनार्य, स्रोत आपन्न, सकृदागामी, अनागामी अर्हत. आदि के रूप में व्यक्तियों का विभाजन, जो सुनों में जीवन-गद्धि के स्वम्प और उसके विकास को दिग्वाने के लिए किया गया है, यहाँ क्रमिक गणनाबद्ध रूप में संगृहीत कर दिया गया है । कुछ-एक उदाहरण पर्याप्त होंगे--
१. डा० मॉरिस द्वारा रोमन लिपि में सम्पादित एवं पालि टैक्सट सोसायटी
(१८८३) द्वारा प्रकाशित । इसका अंग्रेजी अनुवाद 'दि डैजिगनेशन ऑव हयूमन टाइप्स' शीर्षक से डा० विमलाचरण लाहा ने कियाई, जो पालि टैक्सट सोसायटी, लन्दन (१९२३) द्वारा प्रकाशित किया गया है। नागरी-संस्करण
और हिन्दी अनुवाद अभी होने बाकी हैं। इस ग्रंथ के बरमी , सिंहली और स्यामी संस्करण उपलब्ध हैं। महास्थविर ज्ञानातिलोक ने इस ग्रन्थ का जर्मन भाषा में अनुवाद किया है, ब्रेसलो, १९१० ।