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३. अधिपति-प्रत्यय (अधिपति पच्चयो)-किसी वस्तु की उत्पत्ति में अन्य की अपेक्षा जब इन चार पदार्थों यथा (१) इच्छा (छन्द) (२) उद्योग (विरिय) (३) चित्त और (४) मीमांसा (वीमंसा) की सहायता की अधिकता होती है तो इन चार धर्मों में से जिस किसी की अधिकता होती है, वही उत्पन्न होने वाली वस्तु के साथ अधिपति-प्रत्यय के संबंध से संबंधित होता है । उदाहरणतः, जो धर्म इच्छा (छन्द) से संयुक्त है या उससे उद्भूत है, वह इच्छा-अधिपति (छन्दाधिपति) के साथ अधिपति-संबंध से संबंधित है । इसी प्रकार वीर्य, चित्त और मीमांसा अधिपतियों से जो धर्म संयुक्त हैं, वे क्रमगः इनके साथ अधिपति-संबंध मे संबंधित हैं । यहाँ इच्छा, वीर्य,. चित्त और मीमांसा से संयुक्त धर्म, उत्पन्न होने वाली वस्तुएँ 'पच्चयुप्पन्न' है। क्रमश: इच्छा-अधिपति (छन्दाधिपति), वीर्याधिपति (विरियाधिपति), चित्ताधिपति, और मीमांसाधिपति (वोमंसाधिपति) इनके ‘पच्चय-धम्म' है अर्थात् ये वे वस्तुएँ है जिनसे उपयुक्त धर्म उत्पन्न होते है । प्रत्यय-अधिपति प्रत्यय है ।
४. अनन्तर-प्रत्यय (अनन्तर पच्चयो)---यदि कोई वस्तु अपने ठीक पीछे होने वाली वस्तु की उत्पत्ति में सहायक होती है, तो वह उसके साथ अनन्तर प्रत्यय के संबंध से संबंधित होती है। ‘पट्ठान' में कहा गया है येसं येसं धम्मानं अनन्तरा ये ये धम्मा तेमं धम्मानं अनन्तरपच्चयेन पच्चयो' अर्थात् जिन जिन धर्मों के अनन्तर जो जो धर्म होते है, तो पूर्व के धर्म पश्चात् के धर्म के प्रति अनन्तर-प्रत्यय के रूप में प्रत्यय होते हैं। उदाहरणतः, पाँच विज्ञान-धातुओं (चक्षु, श्रोत्र, प्राण, जिह्वा और काय संबंधी विज्ञान-धातुओं) और उनसे संयुक्त धर्मों के अनन्तर मनो-धातु और उससे संयुक्त धर्मों की उत्पत्ति होती है। अतः पाँच विज्ञान-धातु और उनसे संयुक्त धर्म मनो-धातु और उससे संयुक्त धर्मों के प्रति अनन्तर-प्रत्यय के रूप में प्रत्यय है। इसी प्रकार मनो-धातु और उससे संयुक्त धर्म मनो-विज्ञान-धातु और उसमे मंयक्त धर्मों के लिये, कुशल-धर्म, कुशल और अव्याकृत धर्मों की उत्पत्ति के लिए और अकुशल धर्म, अकुशल और अव्याकृत धर्मों की उत्पत्ति के लिए, अनन्तर-प्रत्यय के रूप में प्रत्यय होते है। यहाँ मनोधात, मनो-विज्ञान-धातु, कुशल और अव्याकृत धर्म, अकुशल और अव्याकृत.