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में मिलिन्द के सन्देहों का निवारण किया गया हैं । जो-जो सन्देह स्थविरवाद बौद्ध धर्म की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माने जाते थे उन सब का समाधान सहित समावेश इस परिच्छेद में कर दिया गया है, ऐसा इन विद्वानों ने मान लिया है। गावं और डर ने तो इस पूरे अध्याय तक को बाद को जोड़ा हुआ मान लिया है, जो ठीक नहीं है । पालि मिलिन्द पञ्ह' और चीनी भाषा में प्राप्त 'नागमेन-मूत्र' में विभिन्नता होने के आधार पर तथा अन्य उपर्युक्त आन्तरिक और वाय साक्ष्यों के आधार पर यह मान लिया गया है कि पालि 'मिलिन्द पञ्ह' के अध्याय ४ से लेकर ७ तक बाद के परिवर्द्धन है। एक दूसरा निष्कर्ष यह भी निकाला गया है कि 'मिलिन्द पञ्ह' के प्रारम्भिक काल से ही अनेक संस्करण या पाठ-भेद थे । जर्मन विद्वान् श्रेडर ने उसके सात पाठ भेदों का उल्लेख किया है । निश्चय ही ये सब बातें कल्पना पर आश्रित है और केवल चीनी अनुवाद में पालि 'मिलिन्द पञ्ह' की विभिन्नता के आधार पर निकाले हुए अनुमान मात्र हैं । यह एक अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि 'मिलिन्द पञ्ह' के प्रश्न को लेकर डा० गायगर जैसे विद्वान् को भी भ्रम में पड़ जाना पड़ा है। उन्होंने यह मान लिया है कि पालि 'मिलिन्द पञ्ह' मौलिक रूप से संस्कृत में लिखा गया था और ईसवी सन् के करीब उसका अनुवाद पालि में किया गया । उन्होंने यह भी मान लिया है कि यह अनुवाद लंका में किया गया और प्राचीन नमूनों के आवार पर उसमें अनेक परिवर्द्धन भी कर दिये गए, यथा पूरण कस्मप, मक्खलि गोसाल आदि की कथाएँ दीव - निकाय के सामञ्ञफल - सुत्त के आधार पर और रोहण और नागमेन के सम्बन्ध की कथा महावंस ५। १३१ में निर्दिष्ट सिग्गव और तिस्त की कथा के आधार पर जोड़दी गई । परिवर्द्धनों को सम्भावना को स्वीकार करने हुए भी ( यद्यपि पूरण कस्सप और मक्खलि गोमाल आदि को 'मिलिन्दपञ्च' में व्यक्तियों का बाचक न समझ कर उनके सम्प्रदाय के आचार्यो या पदों का सूचक मान कर उन सम्बन्धी विवरणों को बाद का परिवर्द्धन मानने की भी अपेक्षा नहीं ) 'मिलिन्द पञ्ह' का मौलिक संस्कृत से लंका में पालि में रूपान्तरित किया
१. देखिये विटरनित्ज: इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १७७, पद-संकेत २ २. पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ २७, पद- संकेत २