________________
( ५३८ ) १. सारत्थ दीपनी--समन्तपासादिका (विनय-पिटक की अट्ठकथा) की टीका
२. पठम-सारत्थमंजूसा--सुमंगल विलासिनी (दीघ-निकाय की अट्ठकथा) की टीका
३. दुतिय-मारत्थमंजूसा--पपञ्चमूदनी (मज्झिम-निकाय की अट्ठकथा) की टीका
४. ततिय-सारत्थमंजूमा--सारत्थप्पकासिनी (मंयुन-निकाय की अट्ठकथा) की टीका
५. चतुत्थ-मारत्थमंजूमा--मनोरथ पूरणी (अंगुत्तर-निकाय की अट्ठकथा) की टीका
६. पठम-परमत्थप्पकामिनी--अट्ठसालिनी (धम्मसंगणि की अट्ठकथा) की टीका
७. दुतिय-परमत्थप्पकासिनी--सम्मोहविनोदनी (विभंग की अट्ठकथा) की टीका
८. ततिय परमत्थप्पकासिनी--पञ्चप्पकरणट्ठकथा (धातुकथा, पुग्गलपञत्ति, कथावत्थु, यमक और पट्ठान की अट्ठकथा) की टीका
उपर्युक्त टीकाओं में से केवल 'मारत्थ दीपनी' आज उपलब्ध है। यह तत्कालीन सिंहली भिक्षु सारिपुत की रचना है । इस रचना के अतिरिक्त इन स्थविर की तीन कृतियां और प्रसिद्ध है। (१) लीनत्थ पकासनी--बुद्धघोप-कृत मज्झिम-निकाय की अट्ठकथा की टीका (२) विनय संगह--विनय-संबंधी नियमों का संग्रह । इस रचना का दूमग नाम 'पालिमुत्नक विनयसंगह' (पालिमुक्तक विनयसंग्रह) या 'महाविनय संगहप्पकरण' (महाविनयसंग्रह प्रकरण) भी है । (३) सारत्थ मञ्जूसा-- वुद्धघोषकृत अंगुन्नर-निकाय की अट्ठकथा की टीका । स्थविर मारिपुत्त के शिष्यों ने भी इस टीका-रचना-कार्य में बड़ा योग दिया। उनके गिप्यों में ये प्रधान थे- (१) मंघरक्खित, (२) बुद्धनाग, (३) वाचिस्सर (४) सुमंगल, (५) मद्धम्मजोतिपाल या छपद (६) धम्मकित्ति, (७) बुद्धरक्खिन और (८) मेधंकर । स्थविर संघरक्खित की एकमात्र रचना 'खट्टक मिक्खा.