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है कि बुद्धघोष की रचनाओं के अत्यधिक प्रसार और आदर के कारण ही उनके नाम के साथ इतनी आत्मीयता वहाँ प्रचलित हो गई है । आचार्य बुद्धघोष के निर्माण के विषय में भी कुछ ज्ञात नहीं। किन्तु कम्बोडिया के निवासियों का यह विश्वास है कि बुद्धघोष महास्थविर का परिनिर्वाण उनके देश में ही हुआ था । वहाँ 'बुद्धघोष विहार' नामक एक अत्यन्त प्राचीन विहार आज तक उनकी स्मृति को खंडहर के रूप में खड़ा रह कर सुरक्षित बनाये हुए है।' हमें कम्बोडिया-निवासियों के विश्वास में सन्देह करने का कोई कारण दिखाई नहीं पड़ता । बुद्धघोप की रचनाएँ
आचार्य बुद्धघोष की रचनाएं ये है-- १. विसुद्धिमग्ग -- संयुक्त-निकाय की दो गाथाओं की व्याख्या
के रूप में एक मौलिक कृति २. समन्तपासादिका -- विनय-पिटक की अट्ठकथा ३. कंखावितरणी -- पातिमोक्ख की अट्ठकथा ४. सुमंगलविलासिनी -- दोघ-निकाय की अट्ठकथा . ५. पपञ्चसूदनी --- मज्झिम-निकाय की अट्ठकथा ६. सारत्थपकासिनी -- संयुत्तनिकाय की अट्ठकथा ७. मनोरथपूरणी ___ -- अंगुत्तरनिकाय की अट्ठकथा ८. परमत्यजोतिका -- खुद्दक-निकाय के खुद्दक-पाठ और
सुत्त-निपात की अट्ठकथा ९. असालिनी -- धम्मसंगणि की अट्ठकथा १०. सम्मोहविनोदनी-- विभंग की अट्ठकथा
११-१५. पञ्चप्पकरणट्ठकथा -- धम्म संगणि और विभंग को छोड़कर शेष ५ अभिधम्म ग्रंथों की अट्ठकथाएँ।
१६. जातकठ्ठवण्णना -- जातक की अट्ठकथा
१. देखिये विमलाचरण लाहा : दि लाइफ एंड वर्क ऑव बुद्धघोष, पृष्ठ ४२,
पद-संकेत २