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अत्यन्त पीरशुद्ध, निर्वाण की प्राप्ति का उपाय" । इस उपाय की मुख्य तीन भूमियाँ हैं, जो उत्तरोत्तर क्रमिक साधन के द्वारा प्राप्त कीजाती हैं । इन तीन भूमियों के नाम हैं, शील, समावि और प्रज्ञा । भगवान् बुद्ध के शब्दों में यही तीन धर्मस्कन्ध अर्थात् धर्मं के आधार हैं । शील, समाधि और प्रज्ञा के रूप में साधना के पूरे मार्ग का विवरण करना ही 'विसुद्धि-मग्ग' का लक्ष्य है।' इस महाग्रंथ में कुल मिलाकर २३ परिच्छेद हैं, जिनमें प्रथम दो परिच्छेदशील या सदाचार का निरूपण करते हैं । । ३-- -१३ परिच्छेद समाधिका निरूपण करते हैं । १४ -- २३ परिच्छेद प्रज्ञा का निरुपण करते हैं । शील का निरूपण करने वाले प्रथम दो परिच्छेदों के नाम हैं क्रमश: 'शील -निर्देश' ( सीलनिद्देसो) और 'अवधूत - व्रतों का निर्देश' ( धुतंग निसो) । प्रथम परिच्छेद में आचार्य बुद्धघोष ने अपने विवेच्य विषय को प्रश्नों के रूप में वर्गीकृत किया है-
(१) गील क्या है ?
(२) किस अर्थ से 'शील' है ?
(३) गील के लक्षण, सार, प्रकटित स्वरूप और आसन्न कारण क्या हैं ?
(४) शील का सुपरिणाम क्या है ?
( ५ ) शील कितने प्रकार का है ?
(६) शील का मैला होना क्या है ? (७) शील का निर्मल होना क्या है ?
इन प्रश्नों के उत्तर जो बुद्धघोष ने दिये है, उनका यदि यहां संक्षेप भी दिया जाय तो वह भी कई पृष्ठ लेगा। फिर इनके साथ साथ अनेक अवान्तर विषय भी 'विबुद्धि मग्ग' में सम्मिलित हैं -- जिनका साधकों के लिए अपना महत्व हैं, किन्तु पालि साहित्य के इतिहास में जिन्हें विस्तार भय से उद्धृत नहीं किया जा
१. 'विद्धि मरन' की विषय-वस्तु का विशद विश्लेषण भिक्षु जगदीश काश्यप ने अपनी अभिधम्म- फिलॉसफो, जिल्द दूसरी, पृष्ठ २१८-२५७ में किया है। त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित ने भी "धर्म दूत" अप्रैल - मई १९४७ पृष्ठ ६१-६६ में इसका सुन्दर विश्लेषण किया है ।