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स्थविर की प्रार्थना पर उन्होंने यह अट्ठकथा लिखी थी । प्राचीन भारत को सामाजिक, राजनैतिक, और धार्मिक अवस्था का इस अकेले ग्रन्थ से ही एक पूरा इतिहास निर्मित किया जा सकता है। प्रथम तीन बौद्ध संगीतियों के विवरण में हमने इस ग्रन्थ से कितनी सहायता ली है, यह पूर्व के विवरणों से स्पष्ट हो गया होगा | भगवान् बुद्ध और उनके शिष्यों के जीवन सम्बन्धी अनेक विवरणों के अतिरिक्त तत्कालीन अन्य प्रसिद्ध ऐतिहासिक व्यक्तियों और भौगोलिक स्थानों के विवरण जो हमें यहाँ मिलते है, बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं । इस अट्ठकथा के बाद ही बुद्धघोष ने सुत्तपिटक के निकायों पर अट्ठकथाएँ लिखीं ।
कंखावितरणी
'कंखावितरणी' 'पाति मोक्ख' पर अट्ठकथा है । इस अट्ठकथा में हमें न केवल बुद्धकालीन भिक्षु संघ के जीवन की ही झलक मिलती है, अपितु उसके उत्तरकालीन विकास का भी पर्याप्त ज्ञान होता है ।
सुमंगलविलासिनी
'सुमंगल विलासिनी' दीघ निकाय की अट्ठकथा है । संघस्थविर दाठानाग नामक भिक्षु की प्रार्थना पर आचार्य बुद्धघोष ने यह अट्ठकथा लिखी, ऐसा उन्होंने स्वयं कहा है । बुद्धकालीन भारत की राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थिति के अनेक चित्रों एवं अनेक प्रकार के आख्यानों से यह अट्ठकथा भरी पड़ी है । सुत्तों के अनेक प्रकार के विवेचन, बुद्ध और उनके शिष्यों के जीवन सम्बन्धी अनेक विवरण, इस अट्ठकथा में भी भरे पड़े हैं। उदाहरणतः भगवान् बुद्ध 'तथागत' क्यों कहलाते हैं, उनकी दैनिक चर्या क्या थी, आदि अनेक महत्त्व - पूर्ण विवरण इस अट्ठकथा में हैं । इसी प्रकार बुद्धकालीन महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों यथा जीवक कौमारभृत्य तिष्य श्रामणेर, अम्बट्ठ आदि के विषय में अधिक जानकारी यहाँ दी गई है । इसी प्रकार भौगोलिक दृष्टि से अंग-मगध, दक्षिणा
१. आयाचितो सुमंगलपरिवेणनिवासिना थिरगुणेन
दाठाना संघत्थरेन थेर वंसन्वयेन ।
यं आरभि सुमंगलविलासिनि नाम नामेन ।