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( ५२१ ) मरण, कायगतासति, आनापान-सति और उपशम इन चार अनुस्मृतियों तथा योग-आलम्बनों का विवरण ।
९. ब्रह्मविहार का निर्देश (ब्रह्मविहार निद्देसो)--मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा यही चार भावनाएँ 'ब्रह्म-विहार' कहलाती है । इनका विशद विवरण । इन भावनाओं का निर्देश पतंजलि ने भी अपने योग-दर्शन में किया है।
१०. अ-रूपता का निर्देश (आरुप्प निद्देसो)--अरूपता-सम्बन्धी ध्यानों का विवरण, यथा आकाशाननन्त्यायतन, विज्ञानानन्त्यायतन, आकिञ्चन्यायतन तथा नैवसंज्ञानासंज्ञायतन ध्यानों का विवरण ।
११. समाधि का निर्देश (समाधि निद्देमो) समाधि-भावना का उपदेश एवं शरीर की अशुभता आदि पर ध्यान । आहार में प्रतिकूल-संज्ञा आदि का विवेचन भी।
१२. ऋद्धविध का निर्देश (इद्धविधनिद्देसो)--दिव्यश्रोत्र, परचित्त-ज्ञान, पूर्वजन्म की स्मृति और दिव्य चक्षु इन चार योग-विभूतियों का विवरण ।
१३. अभिज्ञा (उच्चतम ज्ञान) का निर्देश (अभिज्ञा निद्देसो)--पूर्वजन्म की स्मृति आदि का ही विस्तृत विवरण ।
प्रज्ञा की परिभाषा करते हुए आचार्य बुद्धघोप ने कह. है 'कुसलचित्तसम्पयुत्तं विपस्सनाजाणं पञ्जा' अर्थात् कुशल-चित्त से युक्त विपश्यना-ज्ञान ही प्रज्ञा है । प्रज्ञा-स्कन्ध के परिच्छेदों की विषय-वस्तु इस प्रकार है--
१४. स्कन्ध-निर्देश (खन्ध-निद्देसो)--पञ्च-स्कन्धों (रूप, वेदना, संज्ञा संस्कार और विज्ञान) का विवेचन ।
१५. आयतन और धातुओं का निर्देश (आयतन-धातु निद्देसो)--१२ आयतन और अठारह धातुओं का विवरण ।।
१६. इन्द्रिय और सत्यों का निर्देश (इन्द्रिय-सच्चनिद्देसो)--पांच इन्द्रिय और चार आर्य-सत्यों का विवरण ।
१७. प्रज्ञा की भूमियों का निर्देश (पज्ञाभूमिनिद्देसो)--स्कन्ध, आयतन, धातु, इन्द्रिय, सत्य और प्रतीत्य समुत्पाद ये प्रज्ञाकी मूभियाँ है । प्रथम पाँच का वर्णन पहले हो चुका है। यहाँ प्रतीत्य समुत्पाद का विरतृततम विवरण उपलब्ध होता है।