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( ५२५ ) कच्चान, सोण कोळिवीस, राहुल, रट्ठपाल, बंगीस, कुमार कस्सप, उपालि उरुवेल कस्सप आदि के महत्त्वपूर्ण विवरण दिये हुए है। इसी प्रकार महाप्रजापती गोतमी, संघमित्रा तथा अन्य अनेक भिक्षुणियों के भी विवरण है । भगवान् बुद्ध के वर्षावासों का भी बड़ा अच्छा विवरण यहाँ दिया गया है । वुद्धत्व-प्राप्ति से लेकर महापरिनिर्वाण तक के ४५ वर्षवासों को भगवान् ने कहाँ-कहाँ विताया, इस ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण तथ्य के विषय में यहाँ कहाँ गया है--"तथागत प्रथम बोधि में वीस वर्ष तक अस्थिरवास हो, जहाँ जहाँ ठीक रहा वहीं जाकर वास करते रहे। पहली वर्षा में ऋषिपतन में धर्म-चक्र प्रवर्तन कर वाराणसी के पास ऋषिपतन में वास किया। दूसरी वर्षा में राजगृह वेणुवन में। तोसरी और चौथी भी वहीं । पाँचवीं वर्षा वैशाली में महावन कूटागार-शाला में । छठवी वर्षा में मंकुल-पर्वत पर। सातवीं त्रायस्त्रिश भवन में । आठवी भर्ग-देश में सुंसुमार-गिरि के भेस कलावन में । नवीं कौशाम्बी में । दसवीं पारिलेय्यक वनखंड में । ग्यारहयो नाला ब्राह्मण-ग्राम में । वारहवीं वेरंजा में । तेरहवीं चालिय पर्वत पर । चौदहवी जेतवन में । पन्द्रहवीं कपिलवस्तु में । सोलहवीं आलवी में । सत्रहवीं राजगृह में । अठारहवीं चालिय पर्वत पर । उन्नीसवीं भी वहीं । बीसवीं वर्षा राजगृह में । इस प्रकार तथागत ने वीस वर्ष, जहाँ जहाँ ठीक हुआ, वही वर्षावास किया । इससे आगे दो ही निवास-स्थान सदा रहने के लिये किये । कौन से दो ? जेतवन और पूर्वाराम......।"अतः इस अट्ठकथा के अनुसार, बुद्ध के वर्पावासों का यह प्रामाणिक व्यौरा इस प्रकार होगा।
वर्षा-वास
rarur "
जहाँ बिताया अपि पतन राजगृह वैशाली मंकुलपर्वत त्रायस्त्रिंश
१: महापंडित राहुल सांकृत्यायन द्वारा बुद्धचर्या पृष्ठ ७५ में अनुवादित ।