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में से अनेक यहाँ उसी रूप में रक्खी हुई हैं । वास्तव में धम्मपदट्ठकथा कहानियों का एक संग्रह ही है । वासवदत्ता और उदयन की कथा भी इस अट्ठकथा में एक जगह मिलती है । अनेक कथाएँ जातक के अलावा विनय-पिटक से भी ली गई है, जैसे देवदत्त, बोधिराजकुमार, छन्न आदि की कथाएँ । निश्चय ही जातक और धम्मपदट्ठ-कथा का पारस्परिक सम्बन्ध पालि साहित्य के इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । धम्मपदट्ठकथा आचार्य बुद्धघोष की रचना है या नही, इसके विषय में सन्देह प्रकट किया गया है । डा० गायगर ने इसे आचार्य बुद्धघोष की रचना नहीं माना है । उन्होंने धम्मपदट्ठकथा को जातकट्ठवण्णना से भी बाद की रचना माना है, क्योंकि दोनों में अनेक कहानियाँ समान है । यह एक आश्चर्य की बात है कि जो कहानियाँ यहाँ दी गई हैं और जिनके आधार पर धम्मपद की प्रत्येक गाथा को समझाया गया है, उन्हें भी साक्षात् बुद्धोपदेश (बुद्धदेसना ) ही यहाँ बताया गया है, जो ऐतिहासिक रूप से ठीक नहीं हो सकता । कुछ भी हो धम्मपदट्ठकथा की कहानियों में जातक के समान ही प्राचीन भारतीय जीवन, विशेषतः सामान्य जनता के जीवन की पूरी झलक मिलती है और भारती कथा - साहित्य में उसका भी एक स्थान है ।
जातकट्ठवण्णना
जातकट्ठवण्णना का जातक - गाथाओं की अट्ठकथा है । इसके भी बुद्धघोष - कृत होने में सन्देह किया गया है । डा० गायगर ने इसे किसी सिंहली भिक्षु की रचना माना है, फिर चाहे वह भले ही बुद्धघोष क्यों न हों । २ प्राचीन सिंहली अट्ठकथाओं से लेखक ने अपनी सामग्री का संकलन किया है । इन कहानियों या आख्यानों की अपेक्षा धम्मपदट्ठकथा की कहानियाँ अपने स्वरूप में बुद्ध-उपदेशों की भावना से अधिक प्रभावित है । वास्तव में यहाँ तो लोक - विश्वासों की ही झलक अधिक मिलती है । भूत और वर्तमान के ( बुद्ध - ) जीवन की कहानियों
१. उन्होंने इसे किसी मौलिक सिंहली अट्ठकथा का पालि अनुवाद माना है । देखिये उनका पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ३२
२. पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ३१