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( ५२४ ) पथ, घोपिताराम, कोशल, राजगृह आदि के प्राचीन आख्यान-बद्ध इतिहास और उनके विषय में अन्य महत्त्वपूर्ण विवरण दिये गये हैं, जो पालि-त्रिपिटक में नहीं मिलते । इन सब के अलावा 'सुमंगलविलासिनी' में दीघ-निकाय के कठिन शब्दों की निरुक्तियाँ और उनके अर्थ-निर्वचन भी है, जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । उसका सब से अधिक आकर्षक महत्त्व तो ऐतिहासिक ही है, इसमें संदेह नहीं। पपञ्चसूदनी
नुमंगलविलामिनी की ही शैली में लिखित पपञ्चसूदनी मज्झिम-निकाय की विस्तृत अट्ठकथा है । यह अट्ठकथा आचार्य बुद्धघोष ने बुद्धमित्र नामक स्थविर की प्रार्थना पर लिखी थी।' ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से इस अट्ठकथा का भी प्रभूत महत्त्व है । कुरु-प्रदेश, श्रावस्ती (सावत्थि), हिमवन्तप्रदेश आदि के महत्त्वपूर्ण विवरण इस अट्ठकथा में मिलते हैं । विषय-विन्यास मज्झिम-निकाय के समान ही है और उसी के अनुसार बुद्ध-वचनों की क्रमानुसार व्याख्या भी यहाँ की गई है, जो उस दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सारत्थपकासिनी
ज्योतिपाल नामक भिक्षु की प्रार्थना पर आचार्य बुद्धघोष ने सारत्थपकासिनी या संयत-निकाय की अट्ठकथा लिखी ।२ अर्थ और ऐतिहासिक तथा भौगोलिक दृष्टियों से यह अट्ठकथा भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसके अलावा यहाँ इसके विषय में और कुछ नहीं कहा जा सकता। मनोरथपूरणी
मनोरथपुरणी या अंगुनर-निकाय की अट्ठकथा आचार्य वुद्धघोष ने भदन्त नामक स्थविर की प्रार्थना पर लिखी । इस अट्ठकथा की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें भगवान् बुद्ध के शिष्य अनेक भिक्षु और भिक्षुणियों की ज्ञान प्राप्ति का वर्णन किया गया है । उदाहरणत: पिंडोल भारद्वाज, पुण्ण मन्तानिपुत्त, महा
१. आमचितो सुपतिना थेरेन भदन्त बुद्धिमित्तेन, आदि। २. आपाचितो सुमतिना थेरेन भदन्त-जोतिपालेन। कंबीपुरादिसु भया पुब्बे सद्धि वसन्तेन, आदि ॥