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( ५१६ ) . तम निर्देश कर देना। दूसरे शब्दों में 'विसुद्धिमग्ग' बौद्ध योग को एक अत्यन्त क्रमबद्ध ढंग से उपस्थित करने का प्रयत्न करता है। हम पहले देख चुके हैं कि आचार्य बुद्धघोष बुद्ध-मत में प्रवजित होने से पहले पातंजल-योग-दर्शन में निष्णात थे। निश्चय ही उन्होंने 'विसुद्धि-मग्ग' के रूप में बौद्धों के योगदर्शन को ही साधकों के कल्याण के लिए प्रकाशित किया है । पातंजल योग-दर्शन की अपेक्षा 'विसुद्धि-मग' अधिक सुव्यवस्थित और नियम-बद्ध है,' यह कहा जाय तो यह अतिरंजना नहीं होगी । वुद्धघोप महास्थविर ने साधकों के कल्याण के लिए ही इस महाग्रन्थ की रचना की है, इसे उन्होंने इस ग्रन्थ के प्रत्येक परिच्छेद के अन्त में यह कहकर दुहराया है 'साधुजनपामुज्जत्थाय कते विसुद्धिमग्गे' साधुजनों की प्रसन्नता के लिये रचित 'विशुद्धि-मार्ग' में, आदि)। इसी प्रकार इस ग्रन्थ के आदि में भी उन्होंने कहा है "मैं विशुद्धि के मार्ग का भापण करूंगा। सभी साधु पुरुष, जिन्हें पवित्रता की इच्छा है, मेरे कहे हुए को आदरपूर्वक सनें"२ (विसुद्धिमग्गं भासिस्सं तं मे सक्कच्च भासतो। विसुद्धिकामा सब्बे पि निसामयथ साधवो ति)। यह ग्रन्थ महाविहारवासी भिक्षुओं की उपदेशविधि पर ही आधारित है, इसे भी बुद्धघोष ने यहीं दिखा दिया है" 'महाविहारवासी भिक्षुओं की उपदेश-विधि पर आधारित 'विशुद्धि-मार्ग का मैं कथन करूँगा (महाविहारवासीनं देसनानयनिस्सितं विसुद्धिमग्गं भासिस्सं)।
जैसा अभी कहा गया, 'विशुद्धि-मार्ग' साधना-मार्ग की नाना भूमियों का क्रमबद्ध वर्णन करता है। 'विशुद्धि' का अर्थ किया है आचार्य बुद्धघोष ने 'सर्वमल-रहित, अत्यन्त परिशुद्ध निर्वाण' और 'मग्ग' या मार्ग का अर्थ किया है 'प्राप्ति का उपाय' । अत: 'विशुद्धिमार्ग' का अर्थ है 'सर्वमल-रहित,
१. देखिये भिक्षु जगदीश काश्यपः पालि महाव्याकरण, पृष्ठ संतालीस (वस्तुकथा) २. 'विसुद्धिमग्ग' के अन्त में उन्होंने फिर अपनी इसी अभिलाषा को दुहराया है 'तस्मा विसुद्धिकामेहि सुद्धपञ् हि योगिहि। विसुद्धिमग्गे एतस्मिं करणीयो व आदरो ति' (विशुद्धि के इच्छुक, शुद्ध ज्ञान वाले योगी इस विशुद्धि-मार्ग में आदर-बुद्धि करें) पृष्ठ ५०६ (धर्मानन्द कोसम्बी का संस्करण)