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( ४९८ ) बताया गया है और उसे पुराणाचार्यों (पोराणाचरिया) की रचना बतलाया गया है, जब कि अन्य दो अट्ठकथाओं को ग्रन्थाचार्यो (गन्धाचरिया) की रचनाएं बतलाया गया है । इससे स्पष्ट कि 'गन्धवंस' के अनुसार 'महा-अट्ठकथा' की प्राचीनता और प्रामाणिकता अन्य दो की अपेक्षा अधिक थी। 'अन्धट्ठकथा
और 'संखेपट्ठकथा' तथा इनके साथ साथ 'चूलपच्चरी' और 'पण्णवार' नाम की प्राचीन सिंहली अट्ठकथाओं का उल्लेख 'समन्तपासादिका' की दो टीकाओं 'वजिरवुद्धि' और 'सारत्थदीपनी' में भी किया गया है २ । किन्तु इनके विषय में भी हमारी कोई विशेष जानकारी नहीं है । 'आचरियानं समानकथा' जिसका उल्लेख बुद्धघोष ने 'अट्ठसालिनी' के आदि में किया है, किसी विशेष अट्ठकथा का नाम न होकर केवल अनेक अट्ठकथाओं के समान सिद्धान्तों का सूचक है, यही मानना अधिक समीचीन जान पड़ता है। 'आगमट्ठ-कथा', जिसका उल्लेख आचार्य बुद्धघोष ने 'अट्ठसालिनी' और 'समन्तपासादिका' दोनों के आदि में किया है, सम्पूर्ण आगमों या निकायों की एक सामान्य अट्ठकथा ही रही होगी। कुछ भी हो, बुद्धघोष ने जिन प्राचीन सिंहली अट्ठकथाओं का उल्लेख किया है, वे किन्हीं लेखकों की व्यक्तिगत रचनाएँ न होकर महाविहार-वासी भिक्षुओं की परम्पराप्राप्त कृतियाँ थीं जो उनकी सामान्य सम्पत्ति के रूप में चली आ रही थीं। आचार्य बुद्धघोष ने इन महाविहारवासी भिक्षुओं की आदेशना-विधि को लेकर ही अपनी समस्त अट्ठकथाएँ और 'विसुद्धिमग्ग' लिखे, यह उन्होंने सब जगह स्पष्ट कर दिया है । 'विसुद्धि-मन्ग' के साक्ष्य का हम पीछे विवरण देंगे, अभी केवल 'समन्तपासादिका' और 'अट्ठसालिनी के इस साक्ष्य को देखें
"महाविहारवासीनं दीपयन्तो विनिच्छयं
अत्थं पकायसयिस्सामि आगमट्ठकथासु पि" १. पृष्ठ ५९ एवं ६८ (जर्नल ऑव पालि टैक्स्ट सोसायटी, १८८६, में प्रकाशित
संस्करण) २. देखिये गायगर : इंडियन लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ २५ ३. इनके कुछ अनुमानाश्रित विवरण के लिए देखिये लाहा : पालि लिटरेचर, जिल्द
दूसरी, पृष्ठ ३७६; श्रीमती रायस डेविड्स : ए बुद्धिस्ट मेनुअल ऑव साइकोलोजीकल एथिक्स, पृष्ठ २२ (भूमिका)