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प्रयत्न किया है कि ये प्राचीन सिंहली अट्ठकथाएँ बारहवीं शताब्दी ईसवी तक प्राप्त थीं । आज इनका कोई अंश सुरक्षित नहीं है ।
जैसा अभी कहा गया, बुद्धघोष महास्थविर प्राचीन सिंहली अट्ठकथाओं का पालि रूपान्तर करने के लिये ही लंका गये थे । उन्होंने अपनी विभिन्न अट्ठकथाओं में जिन प्राचीन सिंहली अट्ठकथाओं का निर्देश किया है, या उनसे उद्धरण दिये हैं, उनमें ये मुख्य है ( १ ) महा- अट्ठकथा ( २ ) महा - पच्चरी या महापच्चरिय (३) कुरुन्दी या कुरुन्दिय ( ४ ) अन्धट्ठकथा ( ५ ) संखेप-अट्ठकथा ( ६ ) आगमट्ठकथा ( ७ ) आचरियानं समानट्ठकथा । दीघ, मज्झिम, संयुक्त और अंगुत्तर, इन चारों निकायों की अपनी 'अट्ठकथाओं' के अन्त में आचार्य बुद्धघोष ने अलग अलग कहा है “सा हि महा-अट्कथाय सारमादाय निट्ठिता एसा " अर्थात् " इसे मैंने महा- अट्ठकथा के सार को लेकर पूरा किया है" । इससे निश्चित है कि बुद्धघोष - कृत 'सुमंगल विलासिनी' 'पपंचसूदनी' 'सारत्थ पकासिनी' और 'मनोरथपूरणी' ( क्रमशः दीघ, मज्झिम, संयुत्त और अंगुत्तर निकायों की अट्ठकथाएँ) प्राचीन सिंहली अट्ठकथा जिसका नाम 'महा अट्ठकथा' था, पर आधारित हैं । उपर्युक्त कथन के साक्ष्य पर 'सद्धम्म संगह' ( १४वीं शताब्दी) का यह कहना कि 'महा - अट्ठकथा' सुत्तपिटक की अट्ठकथा थी, ' ठीक मालूम पड़ता है । इसी प्रकार 'सद्धम्म संगह' के अनुसार 'महापच्चरी' और 'कुरुन्दी' क्रमशः अभिधम्म और विनय की अट्ठकथाएँ थीं । २ 'कुरुन्दी' 'विनय-पिटक' की ही अट्ठकथा थी, इसे आचार्य बुद्धघोष की अट्ठकथाओं से पूरा समर्थन प्राप्त नहीं होता, क्योंकि विनय-पिटक की अट्ठकथा ( समन्तपासादिका) के आरम्भ में उन्होंने अपनी इस अट्ठकथा के मुख्य आधार के रूप में 'कुरुन्दी' का उल्लेख नहीं किया है । वहाँ उन्होंने केवल यह कहा है कि ये तीनों अट्ठकथाएँ ( महाअट्ठकथा, महापच्चरी, एवं कुरुन्दी ) प्राचीन अट्ठकथाएँ थीं और सिंहली भाषा में लिखी गईं थीं । ‘गन्धवंस' में भी उपर्युक्त तीनों अट्ठकथाओं का उल्लेख किया गया है । वहाँ 'महा-अट्ठकथा' (सुत्तपिटक की अट्ठकथा ) को इन सब में प्रधान
१, २. सद्धम्म संगह, पृष्ठ ५५ ( जर्नल ऑव पालि टैक्स्ट सोसायटी १८९० में प्रकाशित संस्करण)
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