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( ४९५ ) के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ (दीपवंस) भी है । यह भी प्राग्बुद्धघोप-- कालीन पालि साहित्य की एक प्रमुख रचना है । 'वंश-साहित्य' का विवरण देते समय हम इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ का परिचय देंगे । इसी प्रकार सिंहली अट्ठकथाएँ और पुराणाचार्यों (पोराणाचरिय) के ग्रन्थ आदि भी इन शताब्दियों में लिखे गये, जिनका विवरण अट्ठकथा-साहित्य के प्रकरण में ही दिया जायगा। इसी युग के साहित्य के रूप में गायगर ने 'सुत्त संगह' की भी चर्चा की है, जो किसी अज्ञात लेखक के द्वारा किया हुआ सुत्तों का संग्रह है और 'विमानवत्थु' आदि के समान अल्प महत्व की रचना है। बरमी परम्परा इसे 'खुद्दक-निकाय' के अन्तर्गत मानती है, किन्तु इसके प्रणेता या प्रणयन-काल के विषय में कुछ ज्ञात नहीं है।