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हरणतः मिलिन्द पूछता है “भन्ते नागसेन ! क्या सभी लोग निर्वाण प्राप्त कर लेते हैं (भन्ते नागसेन सब्बेब लभन्ति निब्बाणंति ) ? भन्ते नागसेन ! क्या बुद्ध अनुत्तर हैं ? 'भन्ते नागसेन ! क्या बुद्ध सर्वश, सर्वदर्शी है ?' 'क्या वृद्ध ब्रह्मचारी हैं ? ' ' क्या उपसंपदा ( भिक्षु-संस्कार ) ठीक ( सुन्दर ) है ? 'भन्ते नागसेन ! कितने आकारों से स्मृति उत्पन्न होती है ? ' भन्ते नागमेन ! आप कहते हैं श्वास-प्रश्वास का निरोध किया जा सकता है । कैसे भन्ने ? " " भन्ते नागसेन ! भगवान् ने क्या कार्य अत्यंत दुष्कर किया है ?" आदि, आदि । भदन्त नागसेन ने इन सब प्रश्नों और सन्देहों का अत्यंत मनोरम शैली में उत्तर दिया है । प्रश्नकर्ता और उत्तरदाता दोनों ही अपने अपने प्रश्नो तरों से अन्त में संतुष्ट दिखाई पड़ते हैं । राजा मिलिन्द को ऐसा लगता है "जो सब मैने पूछा, सबका भदन्त नागसेन ने मुझे उत्तर दिया (सब्बं मया पुच्छितं ति सब्बं भदन्तेन नागसेनेन विस्सज्जितं ति । भदन्त नागसेन को भी ऐसा होता है " जो सब राजा मिलिन्द ने मुझमे पूछा उस सब का मैंने उत्तर दे दिया (सब्बं मिलिन्देन रज्ञा पुच्छितं सब्बं मया विस्सज्जितंति ।" उठकर भिक्षु संघाराम में चले गये । राजा मिलिन्द भी अपने साथियो के साथ लौट गया । यह तीसरे परिच्छेद की विषय-वस्तु का संक्षेप है |
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कुछ दिन बाद राजा मिलिन्द फिर भदन्त नागसेन के दर्शनार्थ आता है । इस बार वह उन विरोधों को भदन्त नागमेन के सामने रखता है जो उसे तेपिटक बुद्ध वचनों के अन्दर मालूम पड़े हैं । मिलिन्द ने मननपूर्वक एक बुद्धिवाद की तरह त्रिपिटक के विभिन्न ग्रन्थों को पढ़ा है । उसे उनके अन्दर अनेक पारस्परिक विरोधी बातें दिखाई पड़ी हैं । इन्हें वह भदन्त नागसेन के सामने एक-एक करके रख देता है । भदन्त नागमेन उनका उत्तर देते हैं । 'मिलिन्द - पह' का चौथा परिच्छेद, जो इस ग्रन्थ का सबसे लम्बा परिच्छेद है, इन्हीं संबंधी प्रश्नोत्तरों का विवरण है । ऊपर से विरोधी दिखाई देने वाले त्रिपिटक के विभिन्न विवरणों या बुद्ध वचनों के विरोध का परिहार और उनमें समन्वय स्थापन, यही इस परिच्छेद का लक्ष्य है, जो त्रिपिटक के विद्यार्थियों के लिए मदा महत्वपूर्ण रहेगा । इस प्रकरण में राजा मिलिन्द ने जो प्रश्न पूछे हैं या सुलझाने के लिए विरोधी वाक्य रक्खे हैं, वे इतने नाना