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( ४९१ ) है ?" इसी के उत्तर में आगे बढ़ते बढ़ते भदन्त नागसेन १३ अवधूत नियमों (धुतंग) के विवेचन पर आ जाते हैं । इस परिच्छेद का नाम ही 'धुतङ्ग कथा' अर्थात् 'अवधूत-व्रतों का विवरण' है । वास्तव में 'मिलिन्द-पञ्ह' की विषय. वस्तु की अपेक्षा यह 'विसुद्धि-मग्ग' (द्वितीय परिच्छेद) की विषय-वस्तु का अधिक अभिन्न अंग है । अतः इन अवधूत-ब्रतों अधिक विवरण न देकर यहाँ उनके नाम निर्देश कर देना ही आवश्यक होगा । अवधूत-व्रतों की संख्या १३ है, जो इस प्रकार है- (१)पांशुकूलिक (फटे-पुराने वस्त्रों को साफ कर उनसे सीये हुए वस्त्र पहनने का नियम (पंसुकूलिकंग) (२) तीन चीवर (भिक्षु-वस्त्र) पहनने का नियम (ते चीवरिकंग) (३) भिक्षान्न मात्र पर ही निर्वाह करने का नियम (पिण्डपातिकंग) (४) एक घर से दूसरे घर, बिना किसी घर को छोड़े हुए, भिक्षा माँगने का नियम (सपदानचारिकंग) (५) भोजन के लिए दूसरी बार न बैठने का नियम (एकासनिकंग), (६) केवल एक भिक्षापात्र में जितना भोजन आ जाय उतना ही भोजन करने का नियम (पत्तपिंडिकंग) (७) एक बार भोजन समाप्त कर लेने पर फिर कछ न खाने का नियम (खलपच्छाभत्ति कंग) (८) वनवासी होने का नियम (आरञिकंग) (९) वृक्ष के नीचे रहने का नियम (रुक्खमूलिकंग) (१०) खुले आकाश के नीचे रहने का नियम (अब्भोकासिकंग) (११) श्मशान में वास करने का नियम (सोसानिकंग) (१२) यथाप्राप्त निवास स्थान में रहने का नियम (यथासन्थतिकंग) और (१३) न लेटने का नियम (नेसज्जिकंग) । ___ सातवें परिच्छेद (ओपम्मकथापञ्ह) में उपमाओं के द्वारा यह बताया गया है कि अर्हत्त्व को साक्षात्कार करने की इच्छा करने वाले व्यवित को किस प्रकार नाना गुणों का सम्पादन करना चाहिये । किस प्रकार उसे कछुए के पाँच गुण ग्रहण करने चाहिये, कौए के दो गुण ग्रहण करने चाहिये, हिरन के तीन गुण ग्रहण करने चाहिये, आदि,आदि । संवाद के आरम्भ से लेकर अन्त तक भदन्त नागसेन के गौरव की रक्षा की गई है। आरम्भ से ही उन्होने राजा मे तय कर लिया है कि संवाद 'पंडितवाद' के ढंग से होगा, 'राजवाद' के ढंग से नहीं। राजा सदा उनसे नीचे आमन पर बैठता है। प्रथम बार ही उनके उत्तर से सन्तुष्ट होकर वह उनका भक्त बन जाता है। वह उनके पैरों में अपने सिर को रख देता है और विनम्रता पूर्वक ही