________________
( ४९० ) आचायों ने बुद्ध को देखा है (किं पन ते आचरियेहि बुद्धो दिट्ठोति)" "नहीं महाराज !” “भन्ते नागसेन ! यदि आपने भी वुद्ध को नहीं देखा, आपके आचार्यों ने भी बुद्ध को नहीं देखा, तो भन्ते ! मैं समझता हूँ बुद्ध हैं ही नहीं, बुद्ध का कुछ पता ही नहीं ।” यदि किसी आधुनिक विद्वान् के सामने यह प्रश्न रक्खा जाता तो वह उन ऐतिहासिक कारणों का उल्लेख करता जिनके आधार पर बुद्ध का अस्तित्व प्रमाणित किया जाता है। किन्तु नागसेन कालवादी नहीं है । वे धर्मवादी है । उनके लिए बुद्ध का धर्म ही बुद्ध के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है । 'धम्म' के अस्तित्व से ही बुद्ध के अस्तित्व का अनुमान कर लेना चाहिए, यही इस संपूर्ण परिच्छेद की मूल ध्वनि है। "महाराज ! उन भगवान् सम्यक् सम्बुद्ध द्वारा प्रयुक्त ये वस्तुएँ जैसे कि चार स्मृति-प्रस्थान, चारं सम्यक्-प्रधान, चार ऋद्धिपाद, पाँच इन्द्रिय, पाँच बल, सात बोध्यंग और आर्य अष्टांगिक मार्ग अभी विद्यमान हैं । उनको देखकर ही पता लगा लेना चाहिए कि भगवान् बुद्ध अवश्य हुए हैं।” “बहुत जनों को तारकर उपाधि (आवागमनकारण) के मिट जाने से भगवान् निर्वाण को प्राप्त कर चुके । इस अनुमान मे ही जान लेना चाहिए कि वे पुरुषोत्तम हुए हैं ।” “संसार के मनुष्य और देवताओं ने धर्मामृत को प्राप्त किया है, यही देखकर पता लगा लेना चाहिए कि धर्म की बड़ी लहर अवश्य बही होगी।" "उत्तम गन्ध की महक पाकर लोग पता लगा लेते हैं कि जैसी गन्ध बह रही है उससे मालूम होता है कि फूल पुष्पित अवश्य हुए होंगे। वैसे ही यह शील की गन्ध जो देवताओं और मनुष्यों में बह रही है, इसी से समझ लेना चाहिए कि लोकोत्तर बुद्ध अवश्य हुए होंगे “आदि, आदि । इसी प्रसंग में 'धम्म-नगर' (धम्म रूपी नगर) के सुन्दर सांगोपांग रूपक का भी वर्णन किया गया है ।
छठे परिच्छेद में फिर राजा मिलिन्द भदन्त नागसेन के पास जाता है और इस बार वह उनमे फिर एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछता है “भन्ते नागसेन ! क्या कोई गृहस्थ बिना घर को छोड़े, विषय का भोग करते हुए, स्त्री-पुत्रादि से घिरा हुआ, माला-गन्ध-विलेपन को धारण करता हुआ, मोने-चांदी का आस्वादन लेता हुआ. . . . शान्त, निर्वाणपद को साक्षात्कार कर सकता