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हार अथवा चार प्रकार से बुद्ध का समझाने का ढंग, यथा ( अ ) मूल-भूत विचारों के द्वारा (आ) समानार्थवाची शब्दों के द्वारा (इ) चिन्तन के द्वारा (ई ) अशुभ वृत्तियों के निरोध द्वारा । जिन पाँच नयों का विवेचन 'नेत्तिपकरण' में किया गया है, उनके नाम ये है ( १ ) नन्दियावत्त ( २ ) तीपुक्खल ( ३ ) सीहविक्कीलित (४) दिसालोचन, तथा ( ५ ) अंकुस । १८ मूल-पद इस प्रकार है (१) तन्हा (तृष्णा), (२) अविज्जा, (अविद्या), (३) लोभ, (४) दोस (द्वेष ), (५) मोह ( ६ ) सुभ सञ्चा ( शुभ - संज्ञा ) (७) निच्च सञ्ञ ( नित्यसंज्ञा ). (८) अत्तसञ्ञ (आत्म संज्ञा ), ( ९ ) सुक्ख -सञ्ज्ञा ( सुख-संज्ञा ), तथा इन नौ के क्रमशः विपरीतयथा ( १० ) समय ( शमथ - आन्तरिक शान्ति ) ( ११ ) विपस्सना (विपश्यना-विदर्शना), (१२) अ-लोभ (१३) अ-दोस ( अ-द्वेष ), (१४) अ-मोह (१५) असुभ सञ्चा (अशुभ -संज्ञा ) (१६) अनिच्च सञ्चा (अनित्यसंज्ञा ) ( १७ ) अनत्त - सञ्ञा ( अनात्म-संज्ञा ), तथा (१८) दुक्ख सञ ( दुःख - संज्ञा ) । विषय की दृष्टि से बुद्ध उपदेशों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है, इसका भी निरूपण 'नेत्ति पकरण' में किया गया है । इस दृष्टि से विवेचन करते हुए उसने बुद्ध वचनों को इन मुख्य सोलह भागोंमें बाँटा है, यथा ( १ ) संकिलेस-भागिय, अर्थात् वे बुद्ध उपदेश जो चित्त-मलों (संकिलेस ) का विवेचन करते हैं (२) वासना-भागिय अर्थात् वे बुद्ध उपदेश जो वासना या तृष्णा का विवेचन करते हैं (३) निब्बेध-भागिय, अर्थात् वे बुद्ध उपदेश जो धर्म की तह का विवेचन करते हैं (४) असेख-भागिय, अर्थात् अर्हतों की अवस्था का विवेचन करने वाले (५) संकिलेस - भागिय तथा वासना - भागिय ( ६ ) संकिलेस - भागिय तथा निव्वेधभागिय ( ७ ) संकिलेस -भागिय तथा असेख - भागिय ( ८ ) संकिलेस, असेख तथा निब्बेध-भागिय ( ९ ) संकिलेस - वासना-निब्बेध-भागिय ( १० ) वासना-निब्बेध भागिय ( ११ ) तण्हासंकिलेस भागिय ( १२ ) दिट्टि -संकलेस-भागिय (१३) दुच्चरित -संकिलेस - भागिय ( १४ ) तण्हावोदान-भागिय ( तृष्णा की विशुद्धि का उपदेश करने वाले बुद्ध वचन) (१५) दिट्ठिवोदान भागिय (दृष्टि या मिथ्या मतवादों की विशुद्धि का उपदेश करने वाले बुद्ध वचन ) तथा (१६) दुच्चरित - वोदान -भागिय अर्थात् दुराचरण की शुद्धि का उपदेश करने वाले बुद्ध वचन ।