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( ४६२ ) उदाहरणतः, चक्षु-विज्ञान-धातु आदि की उत्पत्ति से पहले चक्षु-आयतन आदि की उत्पत्ति हो चुकी होती है। अतः उसके प्रति वह पुरेजात-प्रत्यय से सम्बन्धित है।
११. पश्चात्-जात-प्रत्यय--(पच्छाजात पच्चयो)--शरोर की उत्पनि पहले हो जाती है । उमके वाद उममें चित्त और चेतसिक पैदा होते हैं। अतः दोनों के बीच का सम्बन्ध पश्चात्-जात-प्रत्यय का है।।
१२. आसेवन-प्रत्यय--(आसेवन पच्चयो)--आसेवन का अर्थ है बारवार आवृत्ति । किसी धर्म का वार वार अभ्यास जिस किसी दूसरे धर्म को जन्म देने का कारण बनता है, तो उसके साथ उसका आसेवन प्रत्यय का सम्बन्ध होता है। उदाहरणतः, प्रत्येक कुगल-धर्म की उत्पत्ति किसी पूर्वगामी कुशल धर्म के आसेवन या सतत अभ्यास से होती है । अतः दोनों के बीच आसेवन-प्रत्यय का सम्बन्ध होता है।
१३. कर्म-प्रत्यय--(कम्म-पच्चयो)---किसी भी कर्म-विपाक के पूर्वगामी कुशल या अकुशल धर्म होते है, अतः उनके बीच का सम्बन्ध कर्म-प्रत्यय का होता है।
१४. विपाक-प्रत्यय--(विपाक पच्चयो)--वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान, इन चार स्कन्धों की उत्पत्ति पूर्व के वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान स्कन्धों के विपाक-स्वरूप होती है, अत: इनके वीच विपाक-प्रत्यय का सम्बन्ध होता है।
१५. आहार-प्रत्यय--(आहार पच्चयो)--भोजन से यह हमारा शरीर बनता है । अतः शरीर का भोजन के प्रति आहार-प्रत्यय का सम्बन्ध है ।
१६. इन्द्रिय-प्रत्यय--(इन्द्रिय पच्चयो)-चक्षु-विज्ञान आदि की उत्पत्ति चक्षुरादि इन्द्रियों के प्रत्यय से है । अतः पहले का दूसरे के प्रति इन्द्रिय-प्रत्यय का सम्बन्ध है।
१७. ध्यान-प्रत्यय--(झान पच्चयो)--ध्यान से संयुक्त अवस्थाओं (धर्मों) को उत्पत्ति ध्यान के अंगों के प्रत्यय से है । अतः पहले का दूसरे के साथ ध्यान-प्रत्यय का सम्बन्ध है ।
१८. मार्ग-प्रत्यय--(भग्ग पच्चयो)-उपर्युक्त के समान मार्ग से संयुक्त