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( ४६३ ) अवस्थाओं की भी उत्पत्ति मार्ग के अंगों के प्रत्यय से है, अतः उनके बीच मार्गप्रत्यय का सम्बन्ध है।
१९. संयुक्त-प्रत्यय-- (सम्मयुत्त पच्चयो)--पूर्वोक्त के समान ही संज्ञा वेदना, आदि से संयुक्त धर्मों की उत्पत्ति क्रमश: संज्ञा, वेदना आदि के अंगों के प्रत्यय से ही है, अतः उनके बीच का सम्बन्ध संयुक्त-प्रत्यय का ही है।
२०. वियुक्त-प्रत्यय--(विप्पयुत्त-पच्चयो)--भौतिक धर्म मानसिक धर्मो के साथ और मानसिक धर्म भौतिक धर्मों के साथ विप्पयुक्त-प्रत्यय के सम्बन्ध से सम्बन्धित है, क्योंकि दोनों का स्वभाव एक दूसरे से वियुक्त रहने का है।
२१. अस्ति-प्रत्यय--(अस्थि पच्चयो)---जिस धर्म की उपस्थिति या विद्यमानता पर दूसरे धर्म की उत्पत्ति अनिवार्यतः निर्भर होती है तो दोनों के बीच अस्ति-प्रत्यय का सम्बन्ध होता है, यथा सम्पूर्ण भौतिक विकारों कीउत्पत्ति के लिये चार महाभूतों की उपस्थिति, अनिवार्यतः आवश्यक है, अतः चार महाभतों के साथ अस्ति-प्रत्यय के सम्बन्ध के द्वारा सम्पूर्ण भौतिक विकार सम्बन्धित है।
२२. नास्ति-प्रत्यय-(नत्यि पच्चयो)--अपनी अनुपस्थिति या अविद्यमानता मे ही जो कोई धर्म किसी दूसरे धर्म की उत्पत्ति में सहायक हो तो वह उत्पन्न होने वाले धर्म के प्रति नास्ति-प्रत्यय के सम्बन्ध से सम्बन्धित होता है। जो चिन और चेतसिक अभी निरूद्ध हो चुके हैं, वे अपनी अविद्यमानता से ही अभी उत्पन्न होने वाले चित्त और चेतसिक धर्मों के प्रति नास्ति-प्रत्यय के सम्बन्ध से सम्बन्धित होते हैं।
२३. विगत-प्रत्यय--(विगत पच्चयो)--उपर्युक्त (२२) के समान। २४. अविगत-प्रत्यय--(अविगत-पच्चयो)--उपर्युक्त (२१) के समान।
ऊपर अभिधम्म-पिटक के ग्रन्थों के विषय और शैली का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। सुत्तन्त में निहित बुद्ध-वचनों के प्रति उनका यही सम्बन्ध है, जो उत्तरकालीन वेदान्त-ग्रन्थों का उपनिषदों के प्रति । अन्तर्ज्ञान और अपरोक्षअनुभूति पर प्रतिष्ठित, जल और वायु के समान सब के लिये सुलभ, बुद्धों (जानियों) के वचन भी, पंडितवाद और शास्त्रीय विवेचनों के फन्दे में फंसकर कितने सखे, आकर्षण-विहीन और जन-साधारण के लिये कितने दुरूह हो जाते