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( ४४६ ) २००. क्या विभिन्न बुद्धों में भी कुछ श्रेणी का तारतम्य है ? अन्धक सम्प्रदाय के
कुछ भिक्षुओं का ऐसा ही मत था। २०१. क्या संसार के चारों भागों में बुद्धों का निवाम है। महासांघिकों का यह
विश्वास था। बाद के महायानी ग्रंथ 'सुखावती व्यूह' में इसी विश्वास का प्रतिपादन किया गया है। ‘सुखावती' व्यूह' में प्रत्येक भाग में रहने वाले बुद्ध का नाम भी दिया हुआ है, जैसे पच्छिमी भाग में भगवान् अमिताभ वुद्ध रहते है. पूर्वी भाग में अमितायु आदि। महासांघिकों को अभी
इसका पता नहीं है। २०२... क्या सभी वस्तुएं और कर्म नियत है ? अन्धक और कुछ उत्तरापथक
भिक्षुओं का ऐमा ही विश्वास था।
बाईसवाँ अध्याय
२०४. क्या बिना कुछ संयोजनों का विनाश किए भी निर्वाण की प्राप्ति हो
मकती है। अन्धकों का विश्वास था कि हो सकती है। यह मत १९८
के प्रायः समान ही है। २०५. क्या अर्हत् के शरीर त्याग करते समय उसका चित्त 'कुशल' रहता है।
अन्धको का यह भ्रमात्मक कथन था। 'कुशल' के दार्शनिक अर्थ को वे
ठीक-ठीक न समझते थे। २०६. क्या निश्चल (आनेज) ध्यान की अवस्था में भी बुद्ध या किसी अर्हत को
मृन्य हो सकती है ? उत्तरापथक सम्प्रदाय के कुछ भिक्षुओं की यही मिथ्या
धारणा थी। २०७-८. क्या गर्भ की अवस्था में या स्वप्न की अवस्था में सत्य का अन्तान
(धम्माभिसमय) या अर्हत्त्व की प्राप्ति सम्भव है ? उत्तरापथक भिक्षु
इसकी सम्भावना मानते थे। २०९. क्या स्वप्न की अवस्था में चित्त 'अव्याकृत' रहता है ? उत्तरापथक सम्प्रदाय
के कुछ भिक्षुओं की ऐसी ही मान्यता थी। स्थविरवादियों के मतानुसार
कुमाल और अकुशल अवस्थाएं भी उत्पन्न हो सकती है। २१०. क्या शुभ और अशुभ मानसिक अवस्थाओं की पुनरावृत्ति सम्भव नहीं है।
ऐमी मान्यता उत्तरापथक भिक्षुओं की थी।