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चुका है। अतः पालि वर्णन ही अधिक प्रामाणिक और समाश्रयणीय हैं । अतः 'कथावत्थु' के नाना सम्प्रदायों के सिद्धान्त-विवरण प्रामाणिक माने जा सकते है
और वौद्ध धर्म के ऐतिहासिक विकास के प्रारम्भिक स्वरूप को समझने के लिए आज भी उनका पर्याप्त महत्व है, इसमें सन्देह नहीं। यमक'
'यमक' का शाब्दिक अर्थ है जोड़ा या जुड़वाँ पदार्थ । 'यमक पकरण' में प्रश्नों को जोड़ों के रूप में रक्खा गया है, यथा (१) क्या सभी कुशल-धर्म कुशलमूल हैं ? क्या सभी कुशल-मूल कुशल-धर्म है ? (२) क्या सभी रूप रूप-स्कन्ध है ? क्या सभी रूप-स्कन्ध रूप है ? (३) क्या सभी अ-रूप अ-रूप-स्कन्ध है ? क्या सभी अ-रूप-स्कन्ध अ-रूप हैं ? आदि, आदि । प्रश्नों के अनुकूल और विपरीत स्वरूपों का यह जोड़ा बनाना इस ग्रन्थ में आदि से अन्त तक देखा जाता है। इसीलिए इसका नाम 'यमक' पड़ा है । 'यमक' का मुख्य विषय है अभिधम्म में प्रयुक्त शब्दावली की निश्चित व्याख्या। अतः उसका अभिधम्मदर्शन के लिए वही महत्व और उपयोग है, जो एक निश्चित पारिभाषिकशब्द-कोश का किसी पूर्ण दर्शन-प्रणाली के लिए। उसकी बहुत कुछ शुष्कता का भी यही कारण है । 'यमक' दस अध्यायों में विभक्त है, जिनमें निर्दिष्ट विपयों के साथ धम्मों के संबंधों को दिखाना ही उसका लक्ष्य है ? अध्यायों के विषय उनके नामों से ही स्पष्ट हो जाते है, यथा (१) मूल यमक--कुशल, अकुशल और अव्याकृत, ये तीन 'मूल' धर्म या पदार्थ। (२) खन्ध-यमक--पञ्च-स्कन्ध । (३) आयतन-यमक--१८ आयतन । (४) धातु-यमक--१८ धातुएँ। (५) सच्च-यमक-४ सत्य । (९) संखार-यमक-संस्कार, कायिक, वाचिक और मानसिक । (७) अनुसय-यमक--9 अनुशय (चित्त के अन्दर सुपुप्त वुराइयाँ)।
१, श्रीमती रायस डेविड्स एवं अन्य तीन सहायक सम्पादकों द्वारा रोमन लिपि में सम्पादित एवं पालि टैक्स्ट सोसायटी (लन्दन, १९११ एवं १९१३) द्वारा दो जिल्दों में प्रकाशित।