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धारणाओं के निरसन के द्वारा उसके विमल, मौलिक स्वरूप का प्रकाशन, यमक में अभिधम्म-गृहीत पारिभाषिक शब्दावली की सदा के लिए भ्रम निवारण करने वाली निश्चित व्याख्या, अभिधम्म-दर्शन का इतना विकास अभी हम उनके छह ग्रन्थों में देख चुके हैं। सातवें ग्रन्थ (पट्ठान) में अब हम अभिधम्म-दर्शन की एक सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमि पर आते हैं। यही वह भूमि है जहाँ से वह नित्य, ध्रुव पदार्थ के गवेषक अन्य भारतीय दर्शनों का साथ छोड़ देता है। कम से कम उनकी सी गवेषणा में तो वह प्रवृत्त नहीं होता। निरन्तर परिणामी 'धर्मो' का विश्लेषण करने के बाद उनकी तह में किसी अ-परिणामी 'धर्मी' को भी क्या अभिधम्म ने देखा है ? ऐसी जिज्ञासा हम अमरता के लालची अवश्य करेंगे । किन्तु लालच (तृष्णा) को अवकाश तथागत ने कब दिया, फिर चाहे वह अमरता का ही क्यों न हो ? हमारा प्रश्न ही गलत है, ऐसा ही उत्तर यहाँ तो हम पायेंगे। अतः बुद्ध-अनुगामी स्थविरों ने भी धम्मों या पदार्थों की अवस्थाओं का ही अध्ययन किया है, प्रवाहों और घटनाओं (जिनमें ही संपूर्ण नाम (विज्ञान-तत्व) और रूप (भौतिक-तत्व) संनिहित है, के अनित्य, दुःख
और अनात्म स्वरूप पर ही जोर दिया है । उनमें अन्तहित किसी कूटस्थ, नित्य, ध्रुव पदार्थ के अस्तित्व की सिद्धि पर उन्होंने जोर नहीं दिया। क्यों? क्योंकि उनके शास्ता के शब्दों में “यह न ब्रह्मचर्य के लिए उपयोगी है और न निर्वेद, शान्ति, परमज्ञान और निर्वाण के लिए ही आवश्यक है।" इस उद्देश्य को समझ लें तो पालि बुद्ध-दर्शन ने अपनी जिज्ञासाओं की जो मर्यादा बाँधली है, उसको हृदयंगम करना आसान हो जाता है। फिर भी अनात्मवादी बुद्ध-मत भौतिकतावादी नहीं है।
जहाँ तक दार्शनिक परिस्थिति की पूर्णता का सवाल है, उसके लिए भी तथागत ने पर्याप्त अवकाश और आश्वासन दिया है। जिसे उन्होंने 'अनत्ता' (अनात्मा) के रूप में निषिद्ध किया है, उसे ही उन्होंने 'निब्बाण' (निर्वाण) के रूप में प्रतिष्ठित किया है। सभी भौतिक और मानसिक अवस्थाएँ अनित्य, दुःख और अनात्म हैं, सापेक्ष हैं, कार्य और कारण की शृंखला से बद्ध हैं। किन्तु निर्वाण असंस्कृता धातु है। वह कार्य-कारण भाव से बद्ध नहीं है । वह उससे ऊपर है । अनपेक्ष है, परमार्थ है। किन्तु दुःख-निवृत्ति की साधना तो भव-प्रवाह में ही करनी है, जो कार्य-कारणभाव से संचालित है । अतः उसी की गवेषणा प्रधान रूप से करनी इष्ट है । भगवान् बुद्ध ने समग्र मानसिक और भौतिक जगत् में यदि किसी