________________
( ४४७ ) २११. क्या सभी पदार्थ (धर्म) एक क्षण तक ही रहते हैं। ऐसी मान्यता पूर्वशैलीय
और अपरशैलीय भिक्षुओं की थी। २१२. क्या (पुरुष और स्त्री के) संयुक्त विचार के साथ मैथुन-सम्बन्ध स्थापित
किया जा सकता है ? यह बात वेतुल्यकों ने उठाई है, किन्तु उन्होंने यह नहीं कहा कि उनका तात्पर्य भिक्षुओं से है या गहस्थों से। स्थविरवादियों
ने इसका कड़ा प्रतिवाद किया है। २१३. क्या ऐसे अ-मानपी जीव है जो भिक्षुओं का रूप धारण कर मैथुन
मेवन करते हैं ? उत्तरापथक सम्प्रदाय के कुछ भिक्षुओं की ऐसी
मान्यता थी। . २१४. क्या बुद्ध ने अपनी शक्ति और इच्छा से ही बोधिसत्व होते समय पशु आदि
योनियों में प्रवेश किया, कड़ी तपस्याएँ की और एक दूसरे उपदेशक के लिए
तपस्या की? अन्धकों की यह मान्यता थी। २१५. क्या ऐसी वस्तु है जो स्वयं काम नहीं, किन्तु कामके समान है। (दया,
महानुभूति, आदि)। इसी प्रकार घृणा नहीं, किन्तु घृणा के समान है,
(ईर्ष्या, मात्सर्य) आदि। अन्धकों की ये मान्यताएँ थीं। १६. क्या यह कहना ठीक है कि पंच-स्कन्ध, १२ आयतन, १८ धातु और
२२ इन्द्रियाँ, 'असंस्कृत' है और केवल दुःख 'संस्कृत' या परिनिष्पन्न (परिनिप्फन) है ? उत्तरापथक और हेतुवादी भिक्षुओ की ऐमी ही मान्यता थी।
ऊपर हम कथावत्थु में निराकृत २१६ मतवादों का संक्षिप्त विवरण दे चुके है। इनमें से बहत कुछ अल्प महत्त्व के है, परन्तु अधिकांश मतवाद बड़े महत्त्व के हैं। उनसे बौद्ध धर्म के उत्तरकालीन विकास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। वास्तव में इसी दृष्टि से उन्हें ऊपर उद्धृत भी किया गया है। कथावत्थु की अट्ठकथा ने जिन सम्प्रदायों के साथ उपर्यक्त मतवादों में से प्रत्येक को संलग्न किया है (कुछ को बिना संलग्न किए भी छोड़ दिया है जैसे २५, ३०, ३१, ३८, १४३, १४४, १७७, और १९७,) उनकी दृष्टि से मतवादों का संकलन करने पर निम्नलिखित सूची बनेगी, जो बौद्ध धर्मके ऐतिहासिक विकास के विद्यार्थी के लिए बड़ी आवश्यक हो सकती है--