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( ४३२ ) अन्धकों का विश्वास था कि विना चित्त के पुनर्जन्म नहीं होता। अतः कम से कम मृत्यु और पुनर्जन्म के क्षण में अचेतन प्राणियों के भी विज्ञान
होता है। ३३. क्या नैवसंज्ञानासंज्ञायतन में विज्ञान उपस्थित नहीं रहता ? अन्धकों का
विश्वास कि नहीं रहता।
चौथा अध्याय
३४. क्या गृहस्थ भी अर्हत् बन सकता है ? उत्तरापथकों का विश्वास ।
स्थविरवादी मतानुसार अर्हत् होने पर मनुष्य गृहस्थाश्रम में नहीं रह
सकता। ३५. क्या जन्म के अवसर पर ही कोई अर्हत् बन सकता है ? उत्तरापथकों
का भ्रम । ३६. क्या अर्हत् की प्रत्येक उपयोग-सामग्री भी पवित्र (अनासव-मल-रहित)
है ? उत्तरापथकों का मत । ३७. क्या अर्हत् होने के बाद भी मनुष्य को चार मार्ग-फलों की प्राप्ति बनी हुई
रहती है ? उत्तरापथकों का विश्वास । ३८. क्या ६ प्रकार की उपेक्षाओं को अर्हन एक ही क्षण में एक ही साथ धारण ___ कर सकता है ? किस सम्प्रदाय की यह मान्यता थी, इसका उल्लेख नहीं
है। स्थविरवादी मतानुसार ऐसी अवस्था सम्भव नहीं है। ३९. क्या वोधि-मात्र से बुद्ध हो जाता है ? उत्तरापथकों का भ्रमात्मक विश्वास,
'बोधि' का अर्थ न समझने के कारण । ४०. क्या ३२ महापुरुष-लक्षणों से युक्त प्रत्येक मनप्य बोधिसत्व है ? उत्तरा
पथकों का विश्वास । ४१. क्या बोधिसत्व को बुद्ध काश्यप की शिष्यता में ही सम्यक् मार्ग की प्राप्ति
हो गई थी ? अन्धकों का ऐसा ही विश्वास था। ४२. ३७ के समान। ४३. क्या संयोजनों (चित्त-बन्धनों) के ऊपर विजय प्राप्त कर लेने का नाम ही
अर्हत्त्व है ? अन्धकों का विश्वास ।