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में तो इनका अपेक्षाकृत गौण स्थान ही हो सकता है । अत: यहाँ केवल मोटी रूप-रेखा उपस्थित कर धम्मसंगणि' में जिस शैली में उनका निरूपण किया गया है, उसका दिग्दर्शन मात्र करा दिया गया है ।' संक्षेप में चित्त और चेतमित्रों के सम्बन्ध का स्वरूप इस नीचे दी हुई तालिका से समझ में आ सकता है--
अ--कुशल-चित्त चित्तों को क्रम संख्या चेतसिकों को संख्या जो उनके अन्दर पाये जाते हैं (पहले दी हुई तालिका के अनुसार) १ एवं २
१३ अन्य समान+२५ शोभन = ३८ ३ एवं ४
उपर्युक्त ३८ में से ज्ञान को घटाकर =३५ ५ एवं ६
उपर्युक्त ३८ में से प्रीति को घटाकर =३७ ७ एवं ८
उपर्यक्त ३८में से ज्ञान और प्रीति
दोनों को घटाकर उपर्युक्त ३८ में से ३ विरतियों (समक् वाणी, सम्यक् कर्म , सम्यक् =३५ आजीव) को घटाकर उपर्युक्त ३५ में से वितर्क को घटाकर = ३४ उपर्युक्त ३४ में से विचार को घटाकर =३३ उपर्युक्त ३३ में से प्रीति को घटाकर = उपर्युक्त ३२ में से करुणा और मुदिता
(दो अ-प्रमाण) को घटाकर १४-१७
उपर्युक्त के समान ही
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१. चित्त और चेतसिकों के सम्बन्ध के विस्तृत और क्रमबद्ध निरूपण के लिए देखिये भिक्षु जगदीश काश्यप : अभिधम्म फिलॉसफी, जिल्द, पहली, पृष्ठ ६८११०; जिल्द दूसरी, पृष्ठ ६८-८७; महास्थविर ज्ञानातिलोक (गाइड शू दि अभिवम्म पिटक, पृष्ठ ६-१३) ने विशेषतः निरूपण-शैली की दृष्टि से ही विवरण दिया है, अतः वह पूर्ण और क्रम-बद्ध नहीं है, किन्तु उनकी दी हुई सूचियाँ और तालिकाएं बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं।