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( ३८९ ) है । उसकी शैली को समझने के लिये चेतसिकों की इस विस्तृत सूची को देखिये, जिसे 'धम्मसंगणि' ने कामावचर-भूमि के कुशल-चित्त के प्रथम भेद (देखिये ऊपर चित्त-विभेद की तालिका) से ही सम्बन्धित किया है । प्रथम प्रकार के चित्त को लक्ष्य कर 'धम्मसंगणि' कहती है "जिस समय कामावचर-लोक से सम्बन्धित कुशल चित्त उत्पन्न होता है, ज्ञान और सौमनस्य से सम्प्रयुक्त, रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पर्श या धम्म के आलम्बन (विषय) को लेकर, तो उस समय १. (१) फस्सो होति, (२) वेदना होति (३) सञा होति (४) चेतना होति
(५) चित्तं होति । २. (६) वितक्को होति (७) विचारो होति (८) पीति होति (९) सुखं होति
(१०) चित्तस्सेकाग्गता (चित्त की एकाग्रता) होति । ३. (११) सद्धिन्द्रियं (श्रद्धा-इन्द्रिय) होति (१२) विरियिन्द्रियं (वीर्य-इन्द्रिय) होति (१३) सतिन्द्रियं (स्मृति-इन्द्रिय) होति (१४) समाधिन्द्रियं होति (१५) पञ्जिन्द्रियं (प्रज्ञा-इन्द्रिय) होति (१६) मनिन्द्रियं (मन-इन्द्रिय) होति (१७) सोमनस्सिन्द्रियं (सौमनस्य-इन्द्रिय ) होति (१८) जीवितिन्द्रियं होति । ४. (१९) सम्मादिट्ठि (सम्यक् दृष्टि) होति (२०) सम्मासंकप्पो (सम्पक संकल्प) होति (२१) सम्मा वायायो (सम्यक् व्यायाम) होति (२२) सम्मासति (सम्यक् स्मृति) होति (२३) सम्मा समाधि (सम्यक् समाधि)
होति । ५. (२४) सद्धा-बलं (श्रद्धा रूपी बल ) होति (२५) विरिय-बलं (वीर्य रूपी
बल) होति, (२६) सति-बलं (स्मृति रूपी बल) होति (२७) समाधि-बलं होति (२८) पञ्जा-बलं (प्रज्ञा रूपी बल) होति (२९) हिरिबलं (नैतिक
लज्जा रूपी बल) होति (३०) ओतप्पबलं (पाप-भय रूपी बल) होति ६. (३१) अलोभो होति (३२) अदोसो होति (३३) अमोहो होति (३४)
१. यस्मिं समये कामावचरं कुसलं चित्तं उत्पन्न होति सोमनस्स सहगतं जाण
सम्पयुत्तं रूपारम्मणं वा सद्दारम्मणं वा गन्धारम्मण वा रसारम्मणं वा फोट्ठबारम्मणं वा धम्मारम्मणं वा तस्मिं समये..... ...