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इस दृष्टि से भी वह उस पर अवलंबित है । इन्हीं सब कारणों से विभंग का अध्ययन-क्रम बौद्ध परम्परा में सदा धम्मसंगणि के बाद ही माना है ।
विभंग की विषय-वस्तु १८ विभागों या विभंगों में विभक्त की गई हैं, जिनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है । विभंग के १८ विभागों या विभंगों के नाम इस प्रकार हैं-
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(१) खन्ध - विभंग - - ( स्कन्ध - विभंग ) (२) आयतन - विभंग - - ( आयतन - विभंग ) (३) धातु-विभंग -- ( धातु विभंग ) (४) सच्च विभंग - - ( सत्य - विभंग ) ( ५ ) इन्द्रिय - विभंग -- ( इन्द्रिय - विभंग ) (६) पच्चयाकार-विभंग - - ( प्रत्ययाकार- विभंग ) (७) सतिपट्टान - विभंग -- (स्मृतिप्रस्थान - विभंग ) (८) सम्मप्पधान विभंग - ( सम्यक् प्रधान-विभंग ) (९) इद्विपाद विभंग -- (ऋद्धिपाद - विभंग) (१०) बोज्भंग - विभंग -- ( बोध्यंग - विभंग ) (११) मग्ग - विभंग --- ( मार्ग - विभंग ) (१२) झान-विभंग - - ( ध्यान - विभंग ) (१३) अप्पमञ्ञ - विभंग -- ( अ - परिमाण - विभंग ) (१४) सिक्खापद - विभंग -- ( शिक्षापद - विभंग ) (१५) पटिसम्भिदा-विभंग -- ( प्रतिसम्विद् - विभंग ) (१६) आण-विभंग -- ( ज्ञान - विभंग )
(१७) खुद्दक - वत्थु - विभंग -- (क्षुद्रक - वस्तु - विभंग )
(१८) धम्म-हृदय-विभंग - - ( धर्म - हृदय - विभंग )
प्रत्येक विभंग का नाम उसकी विषय-वस्तु के स्वरूप का सूचक है । प्रायः प्रत्येक ही विभंग तीन अंगों में विभक्त है, ( १ ) सुत्तन्तभाजनिय, ( २ ) अभिधम्म-भाजनिय, (३) पञ्ह - पुच्छकं । सुत्तन्त - भाजनिय में निरुक्त की जाने वाली