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( ३९५ ) (४) कतम धम्मा अप्पच्चया ? असंखता धातु । इमे धम्मा अप्पच्चया' ।
_ 'अत्युद्धार-कंड' के भी कुछ उदाहरण देखिये-- (१) कतमे धम्मा हेतू चेव सहेतुका च ?
य त्यढे तयो हेतू एकतो उप्पज्जन्ति, इमे धम्मा हेतू चेव सहेतुकाच ।
निःसन्देह ‘धम्मसंगणि' की गणनात्मक शैली इतनी विचित्र है कि साहित्य का सामान्य विद्यार्थी उसमें रुचि नहीं ले सकता । उसमें तो 'कर्म' और 'अकर्म' के स्वरूप का गवेषी और उसके तत्वों को गढ़ चेतना की तह
और उसकी सारी भूमियों में ढूंढने को उद्यत कोई साहित्यिक भिक्षु ही प्रवेश कर सकता है। क्या कुशल है और क्या अकुशल है, इनमें से किसी को भी स्वीकार कर लेने पर चित्त की क्या प्रगतियाँ अथवा अधोमतियाँ होती हैं, उनके क्या मानसिक निदान और लक्षण होते हैं, क्या प्रतिकार होते हैं, उनमें से क्या हेय हैं या क्या ग्राहय है, इन सब की निष्पक्ष और मनोवैज्ञानिक गवेषणा मनुष्य को किसी भावी नैतिक चेतना-प्रधानयुग में जब अभिप्रेत होगी तो 'धम्मसंगणि' की पंक्तियों के आलवालों में फिर मणियों और मौतियों के थाले बनेंगे । अभी तो हमने जहाँ कहीं से चुने हुए कुछ पुष्पों से उसकी अर्चना की है, जो भी इस किं-कुशल-गवेषणा-विहीन युग में कहीं अधिक है ।
विभंग विभंग अभिधम्म-पिटक का दूसरा ग्रन्थ है । 'विभंग' का अर्थ है विस्तृत रूप से विभाजन या विवरण। इसी अर्थ में यह शब्द भद्देकरत्न-सुत्तन्त (मज्झिम
१. कौन से धर्म प्रत्ययों वाले नहीं हैं ? असंस्कृत धातु। यही धर्म प्रत्ययों वाले नहीं हैं। २. कौन से धर्म स्वयं हेतु भी हैं और अन्य हेतुओं से युक्त भी है ? जहाँ दो-तीन हेतु एक जगह उत्पन्न होते हैं, तो यही धर्म स्वयं हेतु भी हैं और अन्य हेतुओं से युक्त भी हैं। उपर्युक्त तथा अन्य पालि उद्धरणों के लिए देखिये भिक्षु जगदीशकाश्यपः
अभिधम्म फिलॉसफी, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ९५-१०३ ३. श्रीमती रायस डेविड्स ने इस ग्रन्थ का सम्पादन रोमन लिपि में पालि टैक्स्ट्