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( ४०५ ) ४--सच्च-विभंग
(चार आर्य-सत्यों का विवरण) पहले, सुत्तन्त-भाजनिय में सुत्तों (विशेषतः दीघ-निकाय के महासतिपट्ठान-सुत्त एवं इस प्रकार के अन्य बुद्ध-वचनों) की भाषा में चार आर्य-सत्यों की प्रस्तावना करते हुए कहा गया है--'चत्तारि अरिय-सच्चानि : दुक्खं अरियसच्चं, दुक्खसमुदयं अरियसच्चं, दुक्खनिरोधं अरियसच्चं, दुक्खनिरोधगामिनी पटिपदा अरियसच्चं' अर्थात् ये चार आर्य-सत्य हैं--दुःख आर्य-सत्य, दुःख-समदय आर्य-सत्य, दुःख-निरोध आर्य-सत्य, दुःख-निरोध-गामी मार्ग आर्य-सत्य । अभिधम्म-भाजनिय में इनकी अभिधम्म के अनुसार व्याख्या है। तृष्णा और चित्त-मलों को दुःख-समुदय का प्रधान कारण माना गया है और इनके निरोध को दुःख-निरोध का भी प्रधान कारण । दुःख-निरोधी-गामी मार्ग की व्याख्या निर्वाण-सम्बन्धी ध्यान के रूप में की गयी है, जिसकी भूमियों का निरूपण 'धम्म संगणि' में हो चुका है। ‘पञ्हपुच्छकं' में चार आर्य सत्यों के विषय में उसी प्रकार के प्रश्न किये गये हैं, जैसे पूर्व के विभंगों में, यथा (१) चार आर्य सत्यों में कितने कुशल हैं ? कितने अकुशल? कितने अव्याकृत ? (२) कितने सुख की वेदना से युक्त हैं, कितने दुःख की वेदना से युक्त , कितने न-सुख-न-दुःख की वेदना से युक्त ? इनके उत्तर इस प्रकार हैं (१) समुदय-सत्य अकुशल है । मार्ग-सत्य कुशल है । निरोध-सत्य अव्याकृत है। दुःख-सत्य, कुशल भी हो सकता है, अकुशल भी और अव्याकृत भी। (२) दो सत्य सुख की वेदना से भी युक्त हो सकते है और न-सुख-न-दुःख की वेदना से युक्त भी। निरोध-सत्य के विपय में निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि वह तीनों प्रकार की वेदनाओं में से किससे युक्त है। दुःख-सत्य सुख की वेदना से भी युक्त हो सकता है, दुःख की वेदना मे भी और न-सुख-न-दुःख की वेदना से भी। उसके विषय में निश्चयपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि वह सुख की वेदना से युक्त है, या दुःख की वेदना से या न-मुख-न-दुःख की वेदना से। दुःख-सत्य को सुख की वेदना से भी युक्त मानकर 'विभंग' ने उसको वह विस्तृत अर्थ दिया है जिसकी स्मृति भगवान् वुद्ध के माथ-साथ महर्षि पतञ्जलि ने भी दिलाई है “परिणामतापसंस्काग्दुःग्वैगुणवृनिविरोधाच्च दुःखमेव सर्व विवेकिनः” (२।१५)