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( ४०१ ) वेदना से युक्त हैं, कितने दुःख की वेदना से युक्त हैं, और कितने न-दुःख-न-सुख की वेदना से युक्त हैं ? इनके फिर उत्तर दिये गये हैं। उदाहरणतः ऊपर उद्धृत प्रयम त्रिक-प्रश्नावली का उत्तर दिया गया है--रूपक्खन्धो अव्याकतो । त्रत्तारो खन्धा सिया कुसला, सिया अकुसला, सिया अकुसला, सिया अव्याकता. अर्थात् रूप-स्कन्ध अव्याकृत है। शेष चार स्कन्ध (वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान) कुशल भी हो सकते हैं, अकुशल भी और अव्याकृत भी। ऊपर उद्धृत द्वितीय त्रिक प्रश्नावली का उत्तर इस प्रकार दिया गया है--द्वे खन्धा न वत्तब्बा सुखाय वेदनाय सम्पयुत्ता ति पि. दुक्खाय वेदनाय सम्पयुत्ता ति पि । तयो खन्धा मिया सुखाय, दुक्खाय अदक्खमसुखाय वेदनाय सम्पयुत्ता। इसका अर्थ यह है-दो स्कन्धों (रूप और वेदना) के विषय में तो न तो ऐसा ही कहा जा सकता है कि वे सुख की वेदना से युक्त हैं और न यह कि वे दुःख की वेदना से युक्त है। शेष तीन स्कन्ध (संज्ञा, संस्कार, विज्ञान) सुख की वेदना से भी युक्त हो सकते है. दुःख की वेदना से भी और-न-सुख-न-दुःख की वेदना से भी। ये उदाहरण मिर्फ गैली का दिग्दर्शन मात्र कराने के लिए दिये गये है । अन्यथा इस प्रश्नोत्तरी में एक-एक करके वे सभी २२ त्रिक और १०० द्विक के वर्गीकरण संनिहित हैं, जिनका उल्लेख पहले हो चुका है। उत्तरों की यह विशेषता है कि वे संक्षिप्त होने के माय-साय स्कन्धों का नाम ले ले कर निर्देश नहीं करते, बल्कि उनकी केवल मंच्या गिना देते हैं।
२-अायतन-विभंग (१२ आयतनों या आधारों का विवरण) सुत्तन्त-भाजनिय में १२ आयतनों का उल्लेख है, जैसे कि १. चक्षु-आयतन
७. जिह्वा-आयतन २. रूप-आयतन
८. रस-आयतन ३. श्रोत्र-आयतन
९. काय-आयतन ४. शब्द-आयतन
१०. स्पृष्टव्य-आयतन ५. घ्राण-आयतन
११. मन-आयतन ६. गन्ध-आयतन
१२. धर्म-आयतन
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