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( ३९२ )
१८-२१
प्रथम ३८ में से करुणा और
मुदिता को घटाकर आ-अकुशल-चित्त
१३ अन्य-समान+४ मूलभूत अकुशल-+लोभ+मिथ्या दृष्टि =१९ उपर्युक्त १९+स्त्यान और मृद्ध (कायिक और मानसिक आलस्य) =२१ उपर्युक्त १९+मान-मिथ्या-दृष्टि = १९ उपर्युक्त २१-+-मान-मिथ्या-दृष्टि =२१ उपर्युक्त संख्या २२ के १९-प्रीति = १८ उपर्युक्त १९----प्रीति--मिथ्यादृष्टि+मान
लोभ-मूलक
२
मोह-मूलक द्वेष-मूलक
उपर्युक्त १९-प्रीति-मिथ्या-दृष्टि +-मान
__ = १८ उपर्युक्त १९-प्रीति--स्त्यान+मृद्ध = २० उपर्युक्त १९---प्रीति--लोभ-मिथ्या-दष्टि
+द्वेष+ईर्ष्या+मात्सर्य+कौकृत्य (चिन्ता) उपर्युक्त २०+स्त्यान+मृद्ध =२२ १० अन्य-समान (प्रीति, अधिमोक्ष, छन्द ये तीन कुल संख्या में से छोड़ दी गई हैं)+मोह-+अहीरिक + अनोत्तप्प+ उद्धच्च +विचिकिच्छा
=१५ उपर्युक्त १५--विचिकिच्छा+ अधिमोक्खो
= १५ इ-अव्याकृत-चित्त
(क) कर्म-विपाक ३४-३८ ) ७ सर्वचित्त-साधारण एवं ५०-५४ भी) ३९ एवं ५५ ) उपर्युक्त ७+वितर्क+विचार+
एवं ४१ और ५६ भी अधिमोक्ष ...
१३ अन्य समान में से छन्द और प्रीति को घटाकर = ११
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