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( ३५९ ) षण की सब से बड़ी विशेषता है भीतर और बाहर के सारे जगत् की नैतिक व्याख्या। नैतिक व्याख्या से तात्पर्य है कर्म के शुभ (कुशल) अशुभ (अकुशल)
और इन दोनों से व्यतिरिक्त एवं अ-व्याख्येय (अव्याकृत) विपाकों के रूप में व्याख्या । ग्रन्थ के मुख्य भाग में चित्त और उससे संयुक्त अवस्थाओं (चेतसिक) का कुशल, अकुशल और अव्याकृत के रूप में विश्लेषण किया गया है । अतः इसे बौद्ध मनोविज्ञान की नैतिक व्याख्या ही कहा जा सकता है, या दूसरे शब्दों में बौद्ध नीतिवाद की मनोवैज्ञानिक व्याख्या भी। ग्रन्थकार (या संकलनकार) ने दोनों के लिये ही पर्याप्त अवकाश दे दिया है । धम्मसंगणि के आरम्भ में 'मातिका' या विषय-सूची दी हुई है। उसमें नैतिकवाद की दृष्टि से वर्गीकरण है, किन्तु ग्रन्थ में जो विवेचन किया गया है, उसका काण्ड-विभाग चित्त और रूप की दृष्टि से है और फिर उसे 'कुसलत्तिक', (कुशल, अकुशल, अव्याकृत) के रूप में विभाजित किया गया है । वास्तव में 'धम्मसंगणि' ने मन की अवस्थाओं की कर्म के शुभ, अशुभ आदि स्वरूपों के साथ व्याख्या करनी चाही है, जो एक दूसरे मे घनिष्ठ और अनिरुक्त रूप से सम्बन्धित है । इसीलिये 'धम्मसंगणि' के विवेचनों में इतनी दुरूहता आ गई है।
फिर भी धम्मसंगणि की 'मातिका' उसकी सारी दुरूह विषय-वस्तु को समझने के लिये एक अच्छी कुंजी है । भौतिक और मानसिक जगत् की व्याख्या धम्मसंगणि में जिस ढंग से की गई है, उसका वह हमें पूरा दिग्दर्शन करा देती है । वह एक प्रकार की विषय-सूची है, जो उन शीर्षकों का उल्लेख कर देती है जिनमें भौतिक और मानसिक जगत् के नाना, पदार्थों (धम्मों) का विश्लेषण सम्पूर्ण ग्रन्थ के अन्दर किया गया है । 'मातिका' में कुल मिलाकर १२२ वर्गीकरण हैं, जिनमें २२ ऐसे वर्गीकरण हैं जो तीन-तीन शीर्षकों में विभक्त हैं। ये 'तिक' कहलाते हैं। शेष १०० ऐसे वर्गीकरण हैं जो दो-दो शीर्षकों में विभक्त है । ये 'दुक' कहलाते हैं । २२ 'तिकों' और १०० 'दुकों' में ही सारे धम्मों का विश्लेषण 'धम्ममंगणि' में किया गया है अभिधम्म-पिटक के अन्य ग्रन्थों में भी इस वर्गीकरण-प्रणाली का पर्याप्त आश्रय लिया गया है। यहाँ 'मातिका' के अनुसार इन 'तिकों' और 'दुकों' का विवरण देना अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा। इनकी गणना इस प्रकार है--
एथाति धम्मसंगणि । अठ्ठसालिनी (धम्मसंगणि की अटठकथा); मिलाइये चाइल्डर्स : पालि डिपशनरी, पृष्ठ ४४७