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( ३६८ ) ५१. अ. जो (चित्त की अवस्थाएँ) मिथ्या धारणाओं को
पैदा करने वाली हैं--(परामट्ठा) आ. जो मिथ्या धारणाओं को पैदा करने वाली नहीं हैं--(अपरामट्ठा) ५२. अ. जो मिथ्या धारणाओं की सहचर हैं--(परामाससम्पयुत्ता)
आ. जो मिथ्या धारणाओं की सहचर नहीं हैं--(परामासविप्पयुना) ५३. अ. जो स्वयं मिथ्या धारणायें हैं और मिथ्या धारणाओं--
को पैदा करने वाली भी हैं--(पगमासा चेव परामट्ठा च) आ. जो स्वयं मिथ्या धारणाएं नहीं है किन्तु मिथ्या धारणाओं को पैदा करने वाली है--
(परामट्ठा चेव नो च परामासा) ५४. अ. जो स्वयं मिथ्या धारणाओं से विमुका है।
किन्तु उन्हें पैदा करने वाली हैं--(परामासविप्पयुत्ता परामट्ठा) आ. जो स्वयं मिथ्या धारणाओं मे विमुक्त हैं और
उन्हें पैदा करने वाली भी नहीं हैं--(परामासविप्पयुत्ता अपरामट्ठः)
(१०--विस्तृत मध्यम दुक)
५५. अ. जो धम्म किसी आलम्बन का सहारा लेकर पैदा होते है-- (साम्मणा)
आ. जो धम्म किसी आलम्बनकासहारा लेकरनहीं पैदा होते-(अनारम्मणा) ५६. अ. जो चेतना-स्वरूप हैं--(चिना)
आ. जो चेतना-स्वरूप नहीं हैं--(नो चित्ता) अ. जो चित्त की सहगत अवस्थाएँ हैं--(चेतसिका) आ. जो चित्त की सहगत अवस्थाएँ नहीं है--(अचेतसिका) अ. जो चेतना मे युक्त हैं--(चित्तसम्प युत्ता)
आ. जो चेतना से युक्त नहीं हैं--(चित्तविप्पयुत्ता) ५९. अ. जो चेतना से संमष्ट हैं--(चित्तसंसट्ठा)
आ. जो चेतना मे गमृष्ट नहीं है--(चित्तविसंसट्ठा) ६०. अ. जो चेतना के द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं--(चित्तसमुद्राना)
आ. जो चेतना के द्वारा उत्पन्न नहीं किये जाते--(नो चित्तसमुद्राना)