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चार भूमियों और उसके तीन स्वरूपों में उसकी उन ८९ अवस्थाओं का वर्गीकरण जो धम्मसंगणि में किया गया है बड़ी अच्छी प्रकार समझ में अब सकता है । चित्त की अवस्थाऍ कुल मिलाकर ८९ हैं, जिनमें भूमियों की दृष्टि से ५४ कामावचर-भूमि से संबंधित हैं, १५ रूपावचर भूमि से संबंधित हैं, १२ अपावचर भूमि से संबंधित हैं और ८लोकोत्तर भूमि से संबंधित हैं । कुशल-चित्त की दृष्टि मे इन ८९ चित्त की अवस्थाओं में से २१ अवस्थाऍ कुशल-चित्त से संबंधित हैं, १२ अवस्थाएँ अकुशल - चिन से संबंधित हैं और ५६ अवस्थाएँ (३६ विपाकचित्त - २० क्रिया-चित्त) अव्याकृत-चित्त से संबंधित है । इनका भी अधिक विश्लेषण करें तो ५४ कामावचर भूमि की चित्त - अवस्थाओं में से ८ कुशल-चित्त की अवस्थाएँ हैं, १२ अकुशल - चित्त की अवस्थाएँ हैं और ३४ (२३ विपाक चित्त + ११ क्रिया-चित्त) अव्याकृत- चित्त की अवस्थाएँ हैं । १५ रूपावचरचित्त की अवस्थाओं में से ५ कुशल-चित्त संबंधी अवस्थाएँ है और १० (५ विपाक चित्त + ५ क्रिया - चित्त) अव्याकृत-चित्त संबंधी अवस्थाएँ हैं । रूपावचर-चित्तभूमि में अकुशल-चित्त की अवस्थाएँ सम्भव नहीं होतीं । १२ अरूपावचर-भूमि की अवस्थाओं में ४ कुशल-चित्त की अवस्थाएँ हैं और ८ (४ विपाक - चित्त + ४ क्रिया - चित्त) अव्याकृत-चित्त की अवस्थाएँ हैं । ८ लोकोत्तर भूमि की अवस्थाओं में से ४ कुशल-चित्त की अवस्थाएँ हैं और ४ अव्याकृत चित्त ( केवल विपाक - चित्त) की अवस्थाएँ हैं । अरूपावचर और लोकोत्तर भूमियों में भी अकुशल- चित्त का होना संभव नहीं । कुशल-त्रिक की दृष्टि से भी इसी प्रकार का विस्तृत विश्लेषण करें तो २१ कुशल-चित्तों में से ८ कामावचर-भूमि के हैं, ५ रूपावचर भूमि के हैं, ४ अख्यावचर भूमि के हैं और ४ ही लोकोत्तर भूमि के हैं । १२ अकुशल- चित्तों में कुल कामावचर भूमि के ही है, क्योंकि अन्य उच्च भूमियों पर अकुशल चित्त का होना संभव ही नहीं । ५६ अव्याकृतचित्त की अवस्थाओं में से ३४ (२३ विपाक - चित्त + ११ क्रिया- चित्त ) कामावर - भूमि की हैं, १० (५ + विपाक -चित्त + ५ क्रिया - चित्त) रूपावचरभूमि को हुँ, ८ (४ विपाक - चित्त + ८ क्रिया-चित्त) अरूपावचर भूमि की हैं और ४ लोकोत्तर भूमि ( केवल विपाक - चित्त) की हैं । अभी यह गणना सुबोध नहीं जान पड़ेगी, किन्तु आगे के विवरण से साफ हो जायगी । धम्म