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आ. जो स्वयं चित्त-बन्धन नहीं है, किन्तु जिनसे चित्त-बन्धन संलग्न हैं---
(संयोजनसम्पयुत्ता चेव नो च संयोजना) २५. अ. जिनसे चित्त-बन्धन संलग्न तो नहीं हैं किन्तु जो चित्त-बन्धनों की
ओर ले जाने वाले हैं--(संयोजनविप्पयत्ता संयोजनिया) आ. जिनसे न तो चित्त-बन्धन संलग्न हो हैं और न जो चित्त-बन्धनों की ओर ले जाने वाले हैं--(संयोजनविप्पयुत्ता असंयोजनिया)
(५-ग्रन्थ-वर्ग) २६. अ. जो चित्त की गाँठे हैं-(गन्था) __आ. जो चित्त की गाँठे नहीं हैं--(नो गन्था) २७. अ. जो चित्त की गाँठों की ओर ले जाने वाली हैं--(गन्थनिया)
आ. जो चित्त की गाँठों की ओर नहीं ले जाने वाली हैं--(अगन्थनिया) २८. अ. जो चित्त की गाँठों की सहचर हैं--(गन्थ-सम्पयुत्ता)
आ. जो चिन की गाँठों को सहचर नहीं हैं-(गन्थ-विप्पयुत्ता) २९. अ. जो स्वयं चित्त को गाँठे है और चित्त की गाँठों की ओर ले जाने वाली
भी हैं--(गन्था चेव गन्थनिया च ) आ. जो स्वयं चित्त को गाँठे नहीं हैं और न चित्त को गाँठों की ओर
___ ले जाने वालो हैं (गन्थनिया चेव नो च गन्या) ३०. अ. जो स्वयं चित्त को गांठें हैं और चित्त को गाँठों को सहचर भी हैं--
(गन्था चेव गन्थसंपयुत्ता च) आ. जो स्वयं चित की गाँठे नहीं है किन्तु चित को गाँठों को सहचर है--
(ग्रन्थसम्पयुत्ता चेव नो च गन्था) ३१. अ. जो चित्त की गांठों की सहचर नहीं हैं, किन्तु
उनको भविष्य में पैदा करने वाली है--(गन्थविप्पयुत्ता गन्थनिया) आ. जो चित्त की गाँठों की सहचर भी नहीं है और न उन्हें भविष्य में पैदा करने वाली ही हैं--(गन्थविप्पयुत्ता अगन्थनिया)
(६-ओघ वर्ग) ३२-३७--ऊपर के समान ही। केवल 'चित्त की गाँठ' की जगह 'ओघ' (बाढ)
का प्रयोग है। (ओघ चार हैं, काम-ओघ, भव-ओघ, (आत्म-) दृष्टि-ओघ और अविद्या-ओघ ।