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अनिवार्य कठिनताएँ हैं। जब तक मूल संस्कृत उपलब्ध न हो तब तक बिना उसके स्वरूप पर विचार किए पालि अभिधम्म के साथ उसके आपेक्षिक महत्त्व और प्रामाण्य के विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। किन्तु हमारे वर्तमान ज्ञान की अवस्था में पालि अभिधम्म के सामने उसकी प्रमाणवत्ता अल्प अवश्य रह जाती है। वह स्पष्टतः आचार्यों की रचना है, जब कि केवल 'कथावत्थुप्पकरण' को छोड़कर शेष पालि अभिधम्म-पिटक बुद्ध-वचन के रूप में ही स्थविरवाद-परम्परा में प्रतिष्ठित है। हाँ, सर्वास्तिवादी अभिधर्म-पिटक की तुलना से यह बात अवश्य स्पष्ट हो जाती है कि सुत्त और विनय की अपेक्षा पालि अभिधम्म की प्रमाणवत्ता निश्चयतः कम और संकलन-काल भी उतनी ही निश्चिततापूर्वक कुछ बाद का है, जिसका विवेचन हम पहले कर आये है।
अभिधम्म-पिटक के ग्रन्थों की विषय-वस्तु का संक्षिप्त विश्लेषणधम्म संगणि'
पालि अभिधम्म-पिटक का सब से प्रथम और सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थ 'धम्मसंगणि' है । वास्तव में यह सम्पूर्ण अभिधम्म-साहित्य की प्रतिष्ठा ही है। 'धम्मसंगणि' में मानसिक और भौतिक जगत् की अवस्थाओं का संकलन किया गया है, गणनात्मक और परिप्रश्नात्मक शैली के आधार पर । धम्मों (पदार्थों) की कामावचर, रूपावचर आदि के रूप में संगणना और संक्षिप्त व्याख्या करने के कारण ही इस ग्रन्थ का यह नाम है। 3 'धम्मसंगणि' के संकलन और विश्ले
१. नागरी लिपि में प्रोफेसर बापट ने इस ग्रन्थ का सम्पादन किया है (भांडार
कर ओरियन्टल सीरीज, पूना ४); रोमन लिपि में पालि टेक्स्ट सोसायटी द्वारा प्रकाशित (लन्दन, १८८५), एडवर्ड मुलर द्वारा सम्पादित, संस्करण प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ के बरमी, सिंहली और स्यामी संस्करण भी उपलब्ध हैं। अंग्रेजी में श्रीमती रायस डेविड्स ने 'ए बुद्धिस्ट मेनुअल ऑव साइकोलोजीकल एथिक्स' (लन्दन, १९००) शीर्षक से इस ग्रन्थ का अनुवाद किया है। हिन्दी में अभी तक इस ग्रन्थ का कोई अनुवाद नहीं निकला है। २. 'संगणि' शब्द में ही यह भाव निहित है, देखिये प्रो. बापट द्वारा सम्पादित
'धम्म-संगणि' का देवनागरी-संस्करण, पृष्ठ १२ (भूमिका) ३ कामावचररूपावचरादिधम्मे संगह्य संखिपित्वा वा गणयति संख्याति