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( ३५७ ) विभंग-१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८९ १० १११२ १३ १४१५१६१७१८ धर्मस्कन्ध-~१९,१८,२०,१०,१७,२१,९,७,८,१५, - ११,१२, १ - - १६ - खाली छोड़ी हुई जगहों का तात्पर्य यह है कि विभंग के ११, १५, १६, और १८ वें अध्याय (विभंग) धर्मस्कन्ध में नहीं मिलते ।। (५) प्रज्ञप्तिपाद या प्रज्ञप्ति-शास्त्र आर्य मौद्गल्यायन की रचना कही जाती है, जो निश्चयतः इस नाम के युद्ध के शिष्य नहीं हो सकते । प्रज्ञप्ति-पाद का चीनी अनुवाद धर्मरक्ष ने ग्यारहवीं शताब्दी में किया। इस ग्रन्थ का चीनी अनुवाद युआन-चुआङ् ने नहीं किया, इसलिये इसकी प्राचीनता में सन्देह किया जाता है । इस ग्रन्थ का तिब्बती अनुवाद भी उपलब्ध है। इसमें १४ वर्ग है । 'प्रज्ञप्ति-पाद' का पालि 'पुग्गलपजत्ति' से केवल नाम का ही साम्य है। विषय में कोई समानता नहीं है । इस ग्रन्थ की कुछ समानता दीघ-निकाय के लक्खण-स्त्त से दिखाई गई है। (६) धातुकाय-पाद चीनी परम्परा के अनुसार कनिष्क के समकालीन प्रसिद्ध सर्वास्तिवादी आचार्य वसुमित्र की रचना बतलाई जाती है । किन्तु यगोमित्र (अभिधर्मकोश के व्याख्याकार) ने इस ग्रन्थ के रचयिता का नाम पूर्ण लिखा है। यशोमित्र का मत ही अधिक प्रामाणिक माना जाता है । इस ग्रन्थ का भी चीनी अनुवाद यूआन्-चूआङ्ने ६६३ ई० में किया। इस ग्रन्थ की पालि 'धातुकथा' से कोई समानता नहीं है। हाँ, संयुत्तनिकाय के धातु-संयुत्त मे इसको विषय-वस्तु बहुत कुछ मिलती-जुलतीहै । (७) संगीति-पर्याय-पाद के रचयिता चीनी परम्परा के अनुसार आर्य शारिपुत्र और यशोमित्र के वर्णनानुसार प्रसिद्ध सर्वास्तिवादी आचार्य महाकौष्ठिल थे। यूआन्-चूआङ ने इस ग्रन्थ का चीनी अनुवाद सातवी शताब्दी के मध्य भाग में किया था। प्रोफेसरं तकाकुस ने इस ग्रन्थ के विषय और शैली की समानता सब से अधिक दीघ-निकाय के संगीति-परियायमत्त से दिखाई है। इस ग्रन्थ में १२ वर्ग हैं। इसका भी अनुवाद यूआन-चआङ के द्वारा किया गया । सर्वास्तिवादी सम्प्रदाय के अभिधर्म-पिटक के उपर्युक्त विवेचन मे स्पष्ट है कि यद्यपि उसमें प्राचीन परम्पराएँ निहित है और पालि अभिवम्म-पिटक के कई अंशों से उसको आश्चर्यजनक समानताएँ भी हैं, फिर भी सुत्त और विनय की अपेक्षा यहाँ समानताएँ कम है । इसका एक प्रधान कारण लम्बी परम्पराओं का एक देश से दूसरे देश में जाना और भाषा-माध्यमों की १. गाइड शू दि अभिधम्म पिटक, पृष्ठ २ (भूमिका) २. जर्नल ऑव पालि टैक्सट सोसायटी, १९०४-०५ , पृष्ठ ९९