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( ३५४ ) पालि अभिधम्म-पिटक
सर्वास्तिवादी अभिधर्म-पिटक १. धम्मसंगणि
(४) धर्मस्कन्धपाद २. विभंग
(३) विज्ञानकायपाद ३. पुग्गलपत्ति
(५) प्रज्ञप्तिपाद ४. धातुकथा
(६) धातुकायपाद ५. पट्ठान
(१) ज्ञान-प्रस्थान ६. यमक
(७) संगीतिपर्यायपाद ७. कथावत्थुप्पकरण
(२) प्रकरणपाद नामों की इतनी समानता होते हुए भी विषय की समानता नहीं हैं।' फिर भी जिन विषयों का निरूपण एक पिटक में किसी ग्रन्थ में पाया जाता है दूसरे पिटक में उन्हीं का या उनके कुछ अंशों का निरूपण किसी दूसरे ग्रन्थ में पाया जाता है। चूंकि दोनों के ही अभिधर्म-पिटक अपने अपने सूत्रों पर अवलंबित हैं जिनमें, जैसा हम पहले देख चुके हैं, अधिक अन्तर नहीं है, अत: दोनों में कुछ न कूछ समानताओं का पाया जाना नितांत स्वाभाविक है । हां, उनके क्रम में अन्तर अवश्य है। सर्वास्तिवादी अभिधर्म-पिटक के ग्रन्थों की विषय-वस्तु के संक्षिप्त परिचय और पालि अभिधम्म के साथ उसकी तुलना में यह स्पष्ट होमा । पहले ज्ञान-प्रस्थान-शास्त्र को ही लें। यह सर्वास्तिवादी अभिधम्मपिटक का सबसे प्रधान ग्रंथ है। शेष छ: ग्रंथ इसी के पाद या उपग्रंथ कहलाते है। उनके साथ इसका वही संबन्ध है जो वेद का उसके छ: अंगों के साथ ।२ ज्ञानप्रस्थान-शास्त्र की रचना सर्वास्तिवाद सम्प्रदाय के प्रसिद्ध आचार्य आर्य कात्यायनीपुत्र ने की । आर्य कात्यायनीपुत्र काश्मीर के रहने वाले थे। इनका समय बुद्धपरिनिर्वाण के ३०० वर्ष बाद है। ज्ञान-प्रस्थानशास्त्र का प्रथम चीनी अनुवादकाश्मीरी भिक्षु गौतम संघदेव ने ३८३ ईसवी में किया। उसके बाद एक दुसरा अनुवाद सन् ६५७-६० ई० में यूआन्-चूआङ के द्वारा किया गया। इसी महाग्रंथ
१. देखिये डा० तकाकुस का 'दि अभिधर्म लिटरेचर' शीर्षक निबन्ध, जर्नल ऑव
रॉयल एशियाटिक सोसायटी, १९०५, पृष्ठ १६१ २. देखिये जर्नल ऑव पालि टैक्स्ट सोसायटी १९०४-०५, पृष्ठ ७४ में डा०
तकाकुसु का अभिधर्म-साहित्य सम्बन्धी निबन्ध