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( ३५३ ) अतः अर्थवाद की दृष्टि से उसे बुद्धवचन भी कहा जा सकता है, इतना अवकाश हमें स्थविरवाद-परम्परा को भी अवश्य देना ही होगा। अन्तत: अभिधम्म-पिटक मुत्त-पिटक पर ही तो अवलंबित है ।
पालि अभिधम्म-पिटक की सर्वास्तिवाद सम्प्रदाय के अभिधर्म-पिटक से तुलना
म्थविग्वादियों और सर्वास्तिवादियों के दो पिटकों-सुत्त और विनय-की तुलना हम पहले कर चुके हैं। सर्वास्तिवादी संप्रदाय के अभिधर्म पिटक के ग्रन्थ चीनी भाषा में सरचित हैं। उनके मुल संस्कृत में थे, किन्तु आज वे प्राप्य नहीं। म्थविन्वादियों के समान सर्वास्तिवादियों का भी यह दावा है कि उनका अभिधर्म पिटक बुद्ध-वचनों (सूत्र-पिटक) पर आधारित है। किन्तु जब कि स्थविरवादी (कथा-वत्थु को छोड़कर) अभिधम्म के ग्रन्थों को मनुष्यों की रचनाएं नहीं मानते. सर्वास्तिवादियों की परम्परा में उनका अभिधर्म-पिटक विशिष्ट विचारों की रचना माना जाता है। चीनी भाषा में सर्वास्तिवादियों के अभिधर्म-पिटक का नाम 'शास्त्र-संग्रह है। स्थविरवादी अभिधम्म पिटक के समान मर्वास्तिवादियों के अभिधर्म-पिटक में भी मात ग्रन्थ है, जिनके नाम उनके रचयिताओं के साथ. इस प्रकार है-- सर्वास्तिवादी संप्रदाय के अभिधर्म
उनके रचयिता पिटक के ग्रन्यों के नाम १. ज्ञान-प्रस्थान-शास्त्र
आर्य कात्यायन २. प्रकरण-पाद
स्थविर वसुमित्र ३. विज्ञान-काय-पाद
स्थविर देवशर्मा ८. धर्म-स्कन्ध-पाद
आर्य शारिपुत्र ५. प्रज्ञप्ति शास्त्र-पाद
आर्य मौद्गल्यायन ६. धातुकाय-पाद
पूर्ण (या वसुमित्र) ७. संगीनि-पर्याय-पाद
महाकौष्ठिल (या गारिपुत्र) पालि अभिधम्म पिटक के साथ इनकी तुलना करने पर ज्ञात होगा कि इनके नामों में पर्याप्त साम्य है. यथा---