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४८. कोसम्बिय-सुत्त-कौशाम्बी के भिक्षुओं को मेलजोल के लिये उपयोगी
छह बातों का उपदेश । ४९. ब्रह्मनिमन्तिक-सुत्त--ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता मानना ठीक नहीं। ५०. मार-तज्जनिय-सुत्त---महामौद्गल्यायन का मार को तर्जन । (६) गहपति वग्ग ५१. कन्दरक-सत्त--आत्म-निर्यातन के विरुद्ध प्रवचन ! ५२. अट्ठक नागर-सत्त---ग्यारह अमृत द्वार (ध्यान) । आनन्द निर्वाण-मार्ग
पर स्थित । ५३. सेक्ख-सुत्त--शैक्ष्य जनों के कर्तव्यों पर आनन्द का प्रवचन । ५४. पोतलिय-मुत्त--आर्य-मार्ग क्या है ? ५५. जीवक-सुत्त-मांस-भक्षण पर बुद्ध-मत । ५६. उपालि-सुत्त--दीर्घ तपस्वी निम्रन्थ के साथ भगवान् का संवाद । ५७. कुक्कुरवतिक-सुत्त--निरर्थक व्रत । कर्म पर भी प्रवचन । ५८. अभयराजकुमार-सुत्त--उपकारी अप्रिय सत्य को भी बोलना कर्त्तव्य है।
यदि वह उपकारी हो है । राजगृह के वेणुवन में इस सुत्त का उपदेश
भगवान् ने अभयराजकुमार को दिया। ५९. बहुवेदनिय-मत्त--वेदनाओं का वर्गीकरण । ६०. अपण्णक-सुत्त--द्विविधा-रहित ( अपर्णक ) धर्म का उपदेश । (७) भिक्खु-वग्ग ६१. अम्बलट्ठिक-राहुलोवाद-सुत्त--"राहुल ! तुझे सीखना चाहिये कि मैं
प्रत्यवेक्षण कर काय-कर्म, वचन-कर्म, मन-कर्म का परिशोधन करूंगा।" अम्बलट्ठिका (वेणुवन के किनारे वासस्थान) में राहुल के प्रति भगवान्
का उपदेश ! ६२. महाराहुलोवाद-सुत्त--राहुल को प्रधानतः आनापानसति (प्राणायाम)
के अभ्यास का उपदेश । “राहुल ! पृथ्वी-समान ध्यान की भावना कर । . . . . . . जैसे राहुल ! पृथ्वी में शुचि वस्तु भी फैकते हैं, अशुचि वस्तु भी फैकते हैं . . . . . . उससे पृथ्वी दुःखी नहीं होती, ग्लानि नहीं करती, घृणा नहीं करती। इसी प्रकार राहुल ! पृथ्वी समान भावना करते तेरे चित्त को अच्छे लगने वाले स्पर्श न चिपटेंगे।. . . . . . राहुल ! मैत्री-भावना