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उपर्युक्त सचियों से स्पष्ट है कि पालि-भिनय-पिटक में शिक्षापदों की संख्या २२७ और चीनी और तिब्बती संस्करणों में वह क्रमश: २५० और २५८ है । जहाँ तक पालि और तिब्बती संस्करणों की तुलना का सवाल है, उनके प्रत्येक नियम की संख्या में समानता है। केवल शैक्ष्य-सम्बन्धी नियमों में असमानता है। पालि संस्करण में वे ७५ है जब कि तिब्बती संस्मरण में १०६ । इसी कारण तिब्बती संस्करण के नियमों की कुल संख्या भी ३१ बढ़ गई है। पालि और चीनी संस्करणों में केवल 'पाचित्तिया धम्मा' (पातयन्तिक) और 'मेखिया धम्मा' (शैक्ष्य) इन दो नियमों की गणना में अन्तर है। पालि संस्करण में इनकी संख्या क्रमशः ९२ और ७५ है जब कि चीनी 'शिवन्-रित्सु' में वह इसी क्रम से ९० और १०० है। 'पाचित्तिय' धर्मों सम्बन्धी मत-भेद कुछ महत्त्वपूर्ण भी हो सकता है, किन्तु सेखिय' धर्मो सम्बन्धी मत-भेद बिलकुल महत्त्वपूर्ण नहीं है । 'सेखिय धम्म' बाह्य शिष्टाचार सम्बन्धी छोटे-मोटे नियम हैं, जो बुद्धोक्त 'क्षुद्रानुभद्र' की कोटि में आसानी से आ जाते हैं। अतः उनके विषय में मतभेद होना भिक्ष-संघ के इतिहास में प्रथम संगीति के समय से ही देखा जाता है । स्वयं विभिन्न चीनी सम्प्रदायों के विनय-पिटकों में भी इसके विपय में समानता नहीं है। पालि विनय-पिटक के ७५ सेखिय' धर्मो के स्थान पर 'शिवन रिन्स' में तो उनकी संख्या १०० है ही, नवीन सर्वास्तिवादी विनय के अनुमार उनकी संख्या १०३ है। तिब्बती मल सर्वास्तिवादियों के अनुसार तो वह १०६ है ही, जैसा हम देख चुके हैं । इस प्रकार कुछ छोटे-मोटे विभेद हैं । 'महाव्युत्पत्ति' (महायानी ग्रन्थ ) ने इन शैक्ष्य धर्मो को 'असंख्य' (संबहुलाः शैक्ष्यधर्माः) बताकर इस सम्बन्धी भेद का बड़ा ही अच्छा समाधान कर दिया है। पालि और चीनी विनय-पिटकों के शिक्षापदों की तुलना के आधार पर यहाँ एक सझाव रख देना आवश्यक जान पड़ता है। पालि विनय-पिटक में, जैसा हमने अभी देखा है, शिक्षापदों की संख्या २२७ है। किन्तु अंगुनर निकाय में कम से कम दो जगह उनकी संख्या १५०
ज्ञप्ति आदि अनेक विनय-सम्बन्धी ग्रन्थों के फोटो लाये हैं, जिनके सम्पादन के बाद इस विषय सम्बन्धी अध्ययन पर पर्याप्त प्रकाश पड़ेगा। अभी ये प्रतिलिपियाँ बिहार और उड़ीसा के ओरियन्टल रिसर्च इन्स्ट्योट्यूट, पटना में सुरक्षित है।