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( ३२५ ) इसके बीच उरुवेला से लेकर वाराणसी तक की उनकी यात्रा का विस्तृत विवरण है। इसी प्रसंग में मार्ग के बीच में ही तपस्सु और भल्लिक नामक वणिकों को भगवान् उपासक बनाते हैं और वे वुद्ध और धम्म की शरण में जाते हैं। उपक नामक आजीवक भी भगवान् को मार्ग में मिलता है, उसके साथ हुए उनके संलाप का विवरण है। वाराणसी में धर्म-चक्र प्रवर्तन करने के बाद भगवान् आज्ञा कौण्डिन्य, भद्दिय, वप्प, अस्सजि और महानाम इन पंचवर्गीय भिओं को जो उनके साथ पहले उरुवेला में रहे थे, बुद्ध-मत में प्रव्रजित करते हैं। इसके बाद यज्ञ के संन्यास का वर्णन है। उसके बाद काश्यप-बन्धओं (जटिल काश्यप, उरवेल काश्यप, नदी काश्यप) को प्रव्रज्या का वर्णन है । महाराज बिंबिसार के उपासकत्व का भी वर्णन है। “भन्ते ! मेरी पाँच अभिलाषाएँ थीं--में राज्य-अभिपिक्त होता-मेरे राज्य में सम्यक् सम्बुद्ध आते--मैं उनकी सेवा करता--वे भगवान् मुझे धर्म-उपदेश करते--उन भगवान् को मैं जानता। भन्ते ! ये मेरी पाँचों इच्छाएँ आज पूरी हो गई । इसलिए भन्ते ! मैं भगवान् की शरण लेता हूँ, धर्म की और भिक्ष-संघ की भी।" इसी समय उसने भिक्षु संघ को वेण-वन दान भीकिया। सारिपुत्र और मौद्गल्यायन के संन्यास का वर्णन, महाकाश्यप के संन्यास का वर्णन, नन्द और राहुल का संन्यास, अनिरुद्ध, आनन्द, उपालि आदि के संन्यास के वर्णन, सभी क्रमानुसार दिए गए हैं जो भिक्षु-संघ के बुद्धकालीन विकास को जानने के लिए तथा इन प्रथम शिष्यों की जीवन-साधना से परिचित होने के लिए बड़े आवश्यक हैं। बद्ध-स्वभाव पर प्रकाश डालने वाले भी अनेक प्रकरण बीचबीच में मिलते ही चलते है। उदाहरणतः इसी वर्ग में हम भगवान बुद्ध को एक रोगी भिक्ष की सेवा-शुश्रुषा करते देखते हैं। साथ में आनन्द भी भगवान को सहायता करते हैं। यह प्रसंग वास्तविक श्रमण-धर्म को जानने के लिए अति आवश्यक है। वास्तव में अनिरुद्ध, उपालि और आनन्द के संन्यास के वर्णन चुल्लवग्ग में हैं, जो महावग्ग का ही आगे का भाग है। इसी वर्ग में आगे अनाथपिडिक की दीक्षा और जेतवन-दान का वर्णन और महाप्रजापती गोतमी की प्रद्रज्या का वर्णन है। यहीं से भिक्षुणी-संघ का भी आरम्भ होता है । चल्लवग्ग के अन्त में प्रथम दो बौद्र संगीतियों के विवरण है। वास्तव में न केवल भिक्षु-संघ के इतिहास की दृष्टि में ही बल्कि छठी शताब्दी ईसवी पूर्व के भारतीय समाज की अवस्था को जानने के लिए भी महावग्ग और चुल्लवग्ग में पर्याप्त सामग्री भरी हुई। जीवक कौमारभृत्य का विवरण जो महावग्ग में आता है, तत्कालीन आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान और उसके