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है) निचली काल-सीमा ठहरती है। इन्हीं के बीच अभिधम्म-पिटक का विकास हुआ है। विशेषतः द्वितीय और तृतीय संगीतियों के बीच का समय अभिधम्म पिटक के संग्रह और रचना का काल माना जा सकता है।
उपर्युक्त काल-सीमाएँ निर्धारित करने से अधिक अभिधम्म-पिटक के ग्रन्थों के प्रणयन के विषय में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। उनकी निश्चित तिथियाँ स्थापित नहीं की जा सकतीं। कब कौन सा ग्रन्थ निश्चित रूप प्राप्त कर प्रकाश में आया, इसका निर्णय नहीं किया जा सकता। हाँ, कुछ सिद्धांतों के आधार पर अभिधम्म-पिटक के ग्रन्थों के काल-क्रम में तारतम्य अवश्य स्थापित किया जा सकता है । परम्परा से अभिधम्म-पिटक के सात ग्रन्थों का उल्लेख जिस क्रम में हमें मिलता है, वह यह है (१) धम्मसंगणि, (२) विभंग (३) कथावत्थु, (४) पुग्गलपत्ति , (५) धातुकथा, (६) यमक और (७ पट्ट न । मिलिन्दपञ्ह (प्रथम शताब्दी ईसवी पूर्व) में इसी क्रम में इन ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है।' 'ममंगलविलासिनी' की निदान-कथा में अवश्य बुद्धकोप ने कुछ परिवर्तन के साथ एक दूसरे क्रम का अनुसरण किया है, किन्तु वह छन्द को आवश्यकता के लिए भी हो सकता है, अत: महत्वपूर्ण नहीं माना जा सकला। विंटरनित्ज़, गायगर, ज्ञानातिलोक, भिक्ष जगदीश काश्यप एवं लाहा आदि विद्वानों ने अभिधम्म-पिटक के अपने विवेचनों में उपर्युक्त क्रम का ही अनुसरण किया है। विषय की दृष्टि से इससे अधिक स्वाभाविक क्रम हो भी नहीं मकता । किन्तु काल-क्रम की दष्टि से इस क्रम को ठीक मानना हमारे लिए अशक्य हो जाता है। केसियस ए० पिरीरा का मत है कि आन्तरिक साक्ष्य के आधार पर बम्मसंगणि, विभंग और पट्टान प्राचीनतम ग्रन्थ है और उनका मंगायन, अपने वर्तमान रूप में, संभवतः द्वितीय संगीति के अवसर पर ही हुआ था। इस प्रकार इन तीन ग्रन्थों ने अपना निश्चित और अंतिम स्वरूप चौथी शताब्दी ईसवी पूर्व के प्रथम चतुर्थांश या उसके पूर्व ही प्राप्त कर लिया था, ऐसा उनका मत है। धातुकथा, यमक और पठान को भी उन्होंने पूर्व-अशोककालीन रचनाएँ माना है और कहा है कि उनका भी संगायन अपने अंतिम रूप में तृतीय संगीति के अवसर पर हुआ था। 'कथावत्थु' की रचना की निश्चित तिथि तृतीय संगीति है हो । 'कथावत्थ' काल-क्रम की दृष्टि से अभिधम्म-पिटक की १. पृष्ठ १३-१४ (बम्बई विश्वविद्यालय का संस्करण) २. दूसरे अध्याय में प्रयम संगीति के वर्णन के प्रसंग में उद्धृत।।
महास्थविर ज्ञानातिलोक की 'गाइड शू दि अभिधम्म-पिटक' के प्राक्कथन में ।