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के सभी अकरणीय है और उनके विपरीत करणीय। विनय-पिटक इन्हीं का कुछ अनुमापन हमें देता है, जो यद्यपि सब काल और सब देगों के लिए परिपूर्ण नही कहा जा सकता, फिर भी वह सदाचार के उस मार्वभौम आदर्ग पर आधारित है जिने लोक-गर (बुद्ध) ने आज ने ढाई हजार वर्ष पूर्व मध्य-मंडल में सिवाया था। विनय के उपदेश करने में, ना नगवान् ने स्वयं कहा है. इस उम उनकी दृष्टि में थे। "भिक्षुओ! दम बातो का विचार कर नै भिओं के अनार के लिए विनय-नियमा (शिक्षापदों) का उपदंग करता हूँ (2) मंत्र को अच्छाई के लिए, (२) संघ की आसानी के लिए, (3) उच्छंग्वल पुरुषों के निग्रह के लिए, (४) अच्छे भिक्षुओं के सुख-विहार के लिए. (५) इन जन्म के चिन्त-मलों के निवारण के लिए. (६) जन्मान्तर के चित्त-मलों के नाम के लिए, ७) अप्रमत्रों को प्रसन्न करने के लिए. (८) प्रमत्रों की प्रमत्रता को बढ़ाने के लिए. (१) मर्म की चिरस्थिति के लिए और (१०) विनय (मंयम) की नहायता (अनुसह) के लिए इन उद्देश्यों पर ध्यानपूर्वक विचार करने से विनय-पिटक के नियमों के रूप और उनके उपयोग की पीना काफी समभ, में आ नकती है। उपानकों और भिक्षुओं के लिए निर्दिष्ट क्रमशः पंच (हिना, चोरी, व्यभिचार, झट और मछ-पान ने विति) और दम (हिमा, चोरी, व्यभिचार, भ और मद्य-पान से विरति एवं जन्य-गीन, माला-गन्ध-विलेपन, ऊंचे पलंग, बिकाल-भोजन एवं रुपये-पैग के ग्रहण में भी बिनि गोलों के समान आज तक क्रमाः गहस्थों ॐर प्रजिता के लिए मार्वभौन नवाचार का कोई दूसरा आदर्ग नहीं रक्खा गया है ? वि.न-पिटक को नियम इन्हीं में अन्तर्भावित है।
आज में ढाई हजार वर्ष पूर्व की मध्य-मंडल की मामाजिक परिस्थिति में न्यागन ने नि-भिगी और उपानक-उपामिकाओं के लिए सदाचार-सम्बन्धी जिन नियमों का विधान किया. उन्होंने बाद में चल कर कितने देशों और कितने विद्यालबंड ने, नारन-गमि में कोसों दर, न्यानी और गृहस्थ सब के लिए नम्मान्य मदाचार की कनौती का काम किया, इसे देख कर आश्चर्यादित रह जाना पड़ता है। लका, बग्मा और म्याम की बात जाने दें, तो भी चीन, तिब्बत और जापान आदि मे जहाँ-जहाँ बौद्ध धर्म गया वहाँ-वहाँ विनय-पिडक सम्बन्धी नियमों का कितना मदम अननीलन किया गया, यह तत्सम्बन्धी माहित्य से
१. विनय-पिटक, पाराजिका १