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संघ से बहिष्कृत कर दिया जाता है । उसके लिये किसी प्रायश्चित्त का विधान नहीं है । जैसे पीली पड़ी हुई पत्ती पेड़ से झड़कर गिर पड़ती है, उसी प्रकार यह भिक्षु श्रामण्य के सर्वथा अयोग्य समझा जाता है और नियमानुसार संघ से उसका निष्कासन कर दिया जाता है । तेरह संघादिसेसा धम्मा ___चार पाराजिक धम्मों का दण्ड तो जैसा हम ऊपर देख चुके हैं संघ से निष्कासन है। ‘संघादिसेस' धम्म इन पाराजिक धम्मों से कुछ कम गम्भीर अपराध माने जाते है। इनका नाम 'संघादिसेस' इसलिये है कि इनके दंड-स्वरूप अपराधी भिक्षु को छह दिन के लिये अस्थायी रूप से संघ को छोड़ देना पड़ता है और प्रायश्चित्त-स्वरूप वह अकेला रह कर तपस्या (मानत्त) करता है। बाद में शुद्ध होकर वह संघ में प्रवेश करता है । 'संघादिसेस' कोटि में आने वाले तेरह अपराध हैं, जो इस प्रकार हैं (१) जान बूझकर वीर्य-नाग करना । अज्ञात रूप से स्वप्न-दोष में वीर्य स्खलन हो जाना इसके अन्तर्गत अपराध नहीं माना जाता (२) काम-वासना से स्त्री-स्पर्श (३) काम-वासना से स्त्री से वार्तालाप (४) अपनी प्रशंसा द्वारा किसी स्त्री को अपनी ओर बुरे उद्देश्य से आकर्पित करना (५) विवाह सम्बन्ध निश्चित करवाना या प्रेमियों का संगम करवाना (६) विना संघ की अनुमति लिये अपने लिये विहार वनवाने लग जाना (७) विना संघ की अनुमति के निश्चित मात्रा में बड़े नाप के विहार बनवाने लग जाना जिनके चारों ओर खुली जगह भी न हो (८) क्रोध के कारण निराधार ही किसी भिक्षु को पाराजिक धम्म' का अपराधी टहराना (९) पाराजिक अपराध से मिलते-जलते किसी अन्य अपराध को पाराजिक अपराध बतलाकर किसी साथी भिक्षु को उसका अपराधी ठहराना (१०) बारबार चेतावनी दिये जाने पर भी संघ में फूट डालने का प्रयत्न करना (११) फूट डालने वालों की सहायता करना। (१२) विना किसी गृहस्थ की अनुमति के उसके घर के भीतर घुम जाना (१३) बारबार चेतावनी दिये जाने पर भी संघ या साथी भिक्षुओं के आदेश को न सुनन।। दो अनियता धम्मा
'अनियत' का अर्थ है अनिश्चित । जिन अपराधों का स्वरूप अनिश्चित हो और साक्ष्य प्राप्त होने पर ही जिन्हें एक विशेप श्रेणी के अपराधों में रक्खा जा